आंध्र का सामाजिक इतिहास | Andhra Ka Samajik Itihas

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Andhra Ka Samajik Itihas by आर. वेकट राव - R. Vekat Ravसुबरम प्रताप रेड्डी - Surbaram Pratap Reddi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुषिका ७७ को मिठास घोलकर कर्शाटिक संगीत के नाम से चिख्यात संगीत-कला को पूरे दक्षिण भारत में फंला दिया । केरल के कथाकली चूर्य गुजरात के गर्भ नृत्य उत्तर भारत की रामलीला श्र कत्थक सृत्य असम के मसरिपपुरी बृत्य झादि विधिष्ट बैविध्यों से युक्त सृत्य-कलाश्रों ने जिस प्रकार भारत के विविध प्रदेशों में अपना विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है उसी प्रकार भान्घ्न में भी कूचिपूडि भागवतों द्वारा परिरक्षित भागवत चृत्य की कला श्रपना विशिष्ट स्थान रखती है । वरंगल जिले में रामप्प गुड़ि मंदिर के नृत्य-शिस्प जायसेनानी की कृति नुत्य-रटनाकर के सजीव उदाहरणां हैं । सभी हिम्दू-पव॑ एक-जेसे नहीं . होते । उत्तर वालों के लिए बसंत पंचमी अर होली प्रत्येकाशिमत खास पर्व हैं तो तमिलनाड़ में पोंगल्‌ को पर्व प्रधान है । वसे ही श्रान्क्र में भी .. उगादि चैत खुदी प्रतिपदा श्रौर एरुवाक जेठ पुनम बड़े पर्व हैं । भारत के चिविध प्रदेशों में विधिघ खेल खेले जाते हैं । उप्पनें बद्रेलाट नमक चोर स्रौर . चिल्लगोडे गिल्‍ली-डंडा तेलंगों की रुचि के खेल हैं । नोचनें सोम मे कहीं है उप्पनें. बट्ूें खेलते हुए यादव नमक लायेंगे पुलिजुदमु दोर-बकरी श्रौर दोम्मरि सट के खेल भी श्रान्ध्न के ही हैं। न प्रे ही वे कुछ विचार हैं जो मैंने तंब लिखे थे । मेरे उन विचारों में शब तक कोई पेरिवतंन नहीं हुआ बल्कि. बे आज श्ौर .भी .श्रधिक हढ़ होगए हैं। . हिमालय से कत्याकुमारी तक हमें . पग-पग पर विभिन्‍न साषा- भाषियों में भिन्नता मिलेगी । मलयाली . तमिक मराठी मारवाड़ी पंजाबी बंगाली - सबकी वेंदी-भूषा अलग है । भाषा सबकी भिन्न है । हार-विहार सबके पथक्‌-पुथक्‌ हैं । मलयाछी को चावल तथा नारियल श. गरबा। लक भा पक का मी न रा कटस्दा पक २. उप्प---मेसक ।




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