भारतीय इतिहास कोश | Bhartiya Itihas Kosha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भू (पक्का फैल कर घन!) , तक श्रपना राज्य स्थापित कर लिया था । १६७्९ई० में श्औरंगजेव खद पेशावर गया तथा कटनीति झ्ौर शस्त्र-बल- से उसने कमल खाँ तथा पठानोंको हरा दिया । अकाल-भारतके श्राधिक जीवनकी एक दूःखद विशेषता । मगस्थनीज (दे०) ने लिखा है कि भारतमें म्रकाल नहीं पड़ता, लेकिन यह कथन बादके इतिहासमें सही नहीं सिद्ध होता । सच तो यह है कि भारत जैसे देशमें मुख्यतः खेती ही जीवन-यापनका साधन है. श्रौर वह मुख्यत श्रनिश्चित मानसूनी वर्षापर निर्भर रहती है । श्रतः यहाँ अ्रकाल प्रायः पढ़ता रहता है। ब्रिटिश राज्यकालक पहलेके श्रकालोंका विश्वस्त विवरण नहीं प्राप्त होता । लेकिन १७५७ ई० की पलासीकी लड़ाई श्रौर १९६४७ ई० में भारतकी स्वाधीनता मिलनेकें समयके बीच, श्र्थात्‌ १६० वर्पकी छोटी श्रवधिके दौरान देशमें बड़े-बड़े नौ अकाल पड़े । यथा, (१) १७६६-७० ई०, जिसमें बंगाल, बिहार श्रोर उड़ीसाकी एक तिहाई आबादी नष्ट हो गयी। (२) १८३७- ३८ ई० में समस्त उत्तरी भारत भझ्रकालग्रस्त जिसमें ८ लाख व्यक्ति मौतके शिकार हुए। (३) १८६१ ई० में पुन: भारी श्रकाल पड़ा, जिसमें उत्तर भारतमें झसंख्य व्यक्ति मरे । (४) १८६६ ई० में उड़ीसामें श्रकाल पड़ा, जिसमें १० लाख लोगोंकी जानें गयीं । (५) १८६८- ६६ ई० में राजपूताना और बुंदेलखंड श्रकालके शिकार हुए । इसमें कम झादमी मरे, फिर भी यह संख्या एक लाखसे कस नहीं थी । (६) १८७३-७४ ई० में बंगाल झर बिहदार- में पुन: भ्रकाल पड़ा, जिसमें लोग भारी संख्यामें मरे । (७) १८७६-७८ ई० का अकाल तो समस्त भारतमें पड़ा, जिसके फलस्वरूप झकेले ब्रिटिश भारतमें ५० लाख व्यक्ति मरे । (८) १८६६-१९६०० ई० में दक्षिणी, मध्य श्रौर उत्तरी भारतमें श्रकाल पड़ा जिसमें साढ़े सात लाख व्यक्ति मरे। (६) १९६४३ ई० में ब्रिटिश सरकारकी 'सबक्षार' नीति, व्यापारियोंकी धनलिप्सात्मक जमाखोरी तथा प्रशासनिक श्रष्टाचारके कारण बंगालमें भ्रकाल पड़ा, जिसमें लगभग १५ लाख व्यक्ति मरे । अकाल आयोग-प८८० ई० में वाइसराय लाई लिटन द्वारा सर रिचरड स्टैचीकी झ्रध्यक्षतामें स्थापित । इसी झायोग- की सिफारिशपर “प्रकाल संहिता की रचना की गयी थी । १८६७ ई० में बाइसराय लाड एलगिमने सर जेम्स लायल- अकाल-उअकाल प्रतिवेदन बल कार्यान्वयनमें परिवर्तन कर.दिया । १९६०० ई० में वाइस- राय लाई कर्जनने सर ऐण्टोनी मैकडानलका शअरध्यक्षतामें ततीय अकाल झ्रायोगकी स्थापना की । इसने भी प्रथम प्रायोगके सिद्धान्तोंका समर्थन किया श्रौर यह सिफारिश . की कि सहायता कार्यवाले क्षेत्रके लिए सहायता-झायुक्त नियक्त किया जाय तथा दुरस्थ क्षेत्रोंमें केव्द्की कामकी व्यवस्था करनेकी श्रपेक्षा सार्वजनिक हितके स्थानीय कार्योमिं अझकालपीड़ितोंको वस्तु-वितरण किया जाय । यह भी सिफारिश की गयी कि अकाल सहायता कार्यमें गैर-सरकारी संस्थाश्रोंका झधिकाधिक सहयोग लिया जाय, कृषि बंक खोले जाय, खेतीके विक- सित तरीके श्रपनाये जायें झौर सिंचाई सुविधाओंका विस्तार किया जाय । इन सिफारिशोंको स्वीकार किया सरकारने उनपर अमल किया । अकाल प्रतिवेदन (१८८०६०)-सर रिच्ड स्ट्रचीकी श्रध्य- क्षतामें नियकत अकाल झ्रायोगद्वारा प्रस्तुत ।. प्रतिवेंदनमें सर्वप्रथम यह मौलिक सिद्धान्त निर्धारित किया गया कि अकालके समय पीड़ितोंको सहायता देना सरकारका कर्तव्य है। इस सिद्धान्तके भ्रनुसार काम करने योग्य व्यक्तियोंको काम देकर सहायता पहुँचाना तथा कमजोर और बढ़े लोगोंको भ्रन्न एवं धनसे सहायता देना उचित बताया गया । यह भी कहा गया कि. सहायताके रूपमें जो काम कराया जाय, वह स्थायी हो श्र इतना बड़ा हो. कि उक्त क्षेत्रके सभी जरूरतमंद लोगोंकी झावश्यकताकी पूर्ति हो सके । बड़ी योजनाझओंपर काम करने हेठु दूर भेजनेके लिए जो लोग योग्य न हों; उन्हें तालाबोंकी खुदाई अथवा पुलिया श्रादि बनानेके स्थानीय काममें लगाया जाय । सहायताके रूपमें दिया. जानेवाला काम तत्काल झ्रायोजित किया जाय झौर भुखमरीसे शक्ति घटने- के पहले ही झकालपीड़ितोंको काम झ्ौर भ्रन्न प्राप्त हो जाय । लगान स्थगित-शअ्रथवा माफ करके बीज एवं कृषि- यन्त्र खरीदनेके लिए अ्रम्रिम धन देकर अ्रकालपीड़ितोंकी भ्रतिरिक्त एवं सामान्य सहायता की जाय । सहायता- वस्तुकी छीजन तथा फिजूल-खर्ची रोकनेके लिए सहायता- व्ययका मुख्य भार झ्रकाल पीड़ित क्षेत्रकी स्यानीय सरकार- को उठाना चाहिए शभ्ौर केस्द्रीय सरकार केवल स्थानीय स्रोतोंमें योगदान देनेका काम करे । सहायताका वितरण मैर-सरकारी प्रतिनिधि माध्यमसे हो । श्रति- वेदनमें यह भी सिफारिश की गयी कि झकाल सहायता बीमाकोषकी स्थापनाके लिए प्रतिवर्ष डेढ़ करोड़ रुपया लग कर दिया जाया करे जिससे *कश्रकालके समय प्राबश्यकता पढ़नेपर धन लिया जा सके ।.




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