पालि साहित्य का इतिहास | Pali Sahitya Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
331
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
आधे संस्कृत मे उल्था कर बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी' के जनेल में
प्रकाशित करवाया (१६३४) ।
तिब्बत में बौद्ध-धम' लिखते समय जब राहुल जी ने भोटिया ग्रंथों
कै पश्ने उलटे, तो उन्हे विश्वासं हो गया कि भारत से गयी कई हजार ताल
पोथियो में से वहाँ कुछ जरूर होनी चाहिए । तिब्बत की दूसरी यात्रा में
ल्हासा में बैठ कर उन्होने विनयफ्टिक' का अनुवाद भी समाप्त किया ।
इस बार रेडिझू, साकया, आदि प्राचीन मठों की सत्रा में वादत्याय
अभिधमंकोशमूल, सुभाषित रतकोष, न्यायबिन्दुपल्जिका रीका, हेतु-
बिन्दु-अनुटीका, प्रातिमोक्षसूत्र, मघ्यान्तविभग भाष्य, वा्तिकालंकार
(खण्डित) आदि भारत से लुप्त ग्रंथ मिले । उन्होने इनकी प्रतिलिपिया
अथवा फोटो कापिया तैयार कर ली । पहली बार तिब्बत से लौट कर
उन्होने धर्मकीति के प्रमाणवातिक का तिन्बती से सस्कृत भाषान्तर करना
शुरू किया था । तिब्बत की दूसरी यात्रा से नेपाल के रास्ते लौटते
५.७ पण्डित् हेमराज के यहाँ मूल की फोटो कापी ही मिल गयी,
जिसमें सिफ दस पन्ने नहीं थे ।
भारत लौट कर उन्होने वादन्याय' छपवाया । १६३५ में जापान,
चीन, कोरिया की यात्रा पर सोवियत रूस की पहली झाँकी लेते ईरान के
रास्ते भारत लौट १६३६ में राहुल जी तीसरी बार तिब्बत पहुँचे । साक्या
में 'वातिकालकार प्रमाणवार्तिक भाष्य' पूरा मिला । साथ ही कर्णंगोमिक्ृत
सवृत्ति टीका भी अर्थात् प्रमाणवातिक की टीका और भाष्य, असग की
महत्वपूणं पुस्तकं 'योगाचारभूमि' भी मिनी । प्रमाणवातिक कं तीन परिच्छेदो
पर प्रज्ञाकरगुप्त को टीका मी मिली । शलू विहार मे प्रमाणवातिकं पर
मनोरथनन्दी कृत सुन्दर वृत्ति मिली । उन्होने सबकी नकल उतार ली ।
धर्मकीति के हेतुबिन्दु' का तिन्बती से अनुवाद ओर अचंट (धर्मा
करदत्त) की टीका के सहारे इसे उन्होने बाद मे संस्कृत मे किया अचंट की
टीका ओर न्यायजिन्दुपञ्जिका' (धर्मोत्तिरकृत) पर दुरवेकं मिश्र की टीकाए
उन्हें १६३९ मे 'डोर' मर मे मिली ।
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