भारतीय इतिहासपुनर्लेखन क्यों एवं पुराणों में इतिहासविवेक | Bhartiya Itihaspunarlekhan Kyo Avam Purano Mein Itihasvivek

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Bharatiya Itihaspunrlekhan Kyon Evam Purano Moin Itihas-vivek by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय इतिहास की विक्ृोति के कारण १५ पू० बमाई थी और इसी के निकट लौहस्तम्भ पर चन्द्रगुप्त द्वितीय, विक्रमादित्य (द्वितीय) ने अपनी विजयगाथा अंकित कराई] इसी प्रकार आगरा मे तथाकथित ताजमहल निदचय ही प्राचीन राजपूत शासकों का महल (प्रासाद) था, जिसको शाहजहाँ ने स्वर्निमित घोषित करवा दिया । प्राचीन हिन्दूमन्दिरों को तोड़कर - मुस्लिमों ने किस प्रकार मस्जिदें बनायीं, यह तथ्य किसी विज्ञ इतिहास पाठक से अज्ञात नहीं है, इसका सर्वाधिक प्रसिद्ध उदाहरण वाराणसी में विश्वताथ का स्वर्ण मन्दिर है, जिसका एक बड़ा भाग अभी भी मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। अत: श्री ओक के इस मत से कोई भी वैमत्य नहीं होता चाहिए कि बर्बर, असमभ्य और असंस्कत मुस्लिम आकान्ता ऐसे श्रेष्ठ भवनों को बनाना जानते ही नहीं थे, वे केवल ध्वंसकर्ता थे, उन्त. आक्रांताओं के पास ऐसे श्रेष्ठभवनों के बनाने का न समय था, न साधन और न ही कौशल । उन्होने प्राचीन भवनों को ध्वंस ही अधिक किया ओर उनको विकृत करके उस पर आधिपत्य जमा लिया, वे स्वयं वहाँ के शिल्पियों को बलप्‌वक अपने देशों मे ले गये जहाँ उन्होने भारतीय अनुकत्ति पर भवनादि बनवाये। अतः कश्मीर के निशात भौर शालिमार (शालि मागं ) उद्यान, दिल्‍ली आगरा के लालकिले, तथाकथित कुतुबमीनार तथा इसी प्रकार के सम्पूर्ण भारतवर्ष में बिखरे हुए शतशः भवनों का निर्माण सहस्रों वर्षों पूर्व भारतीयों ने ही. किया था, जिनको उत्तरकालीन मुस्लिम आकान्ताओं ने आधिपत्य करके स्वनिर्मित घोषित किया । यह भारतीय इतिहास में महान्‌ जालसाजी (विकृति) का एक बड़ा भारी उदाहरण माना जाना चाहिए और निश्चय ही इस विकति का निराकरण होना चाहिए। मुस्लिम शासकों के परचात्‌ अंग्रेजी दागसन के स्तम्भ, मेकाले की योजना के अन्तर्गत, भारतीय इतिहास एवं वाङ्मय के सम्बन्ध में पाश्चात्य षड्यन्त्र की कहानी संक्षेप में लिखेंगे । पाश्चात्यों को संस्कृतविद्या से परिचय--पाश्चात्यषड़यन्त्रकारी ईसाईलेखकों । ने भारतीयसार्हित्य विशेषतः संस्कृतवाङ्मय का अध्ययन इसलिए किया किं वे यहाँ के रीति-रिवाजों एवं संस्कति को जानकर, उस पर प्रहार कर सकं, जिससे किं म॑काले की योजनानुसार भारतीयों को काले रंग का अंग्रेज (ईसाई) बनाया जा सके, जिससे ब्रिटिशशासन भारत में चिरस्थायी हो सके । मैकडानल ने संस्कृत साहित्य का इतिहास (अंग्रेजी में) की भूमिका में स्पष्ट लिखा है---10 18 ए60प७1801ए & 8पछांभ्रा। 8 10০% (1121 0০%70 10 ६16 916587 6106 100 0015601: ০ 5.151117৮ 1169196016 83 2. 11016 1185 एष्टा 11660, 1) 16015115150 00 0119 ५०65 181 [दा 21016 0855085 71४८0 [17816 1061४, एण (06 11500 1 5090. 00. 0176৫ 16ি 200 017০0860605 00900126012 0 ০01 1270127) 90210176 0011% 10 18०6 8 9९९०४ [7161651 001: 81115) 7300. मंकडानंल का तात्पयं यहूहै कि उन्होंने 'संस्कृतसाहित्य का इतिहास” इसलिये नहीं लिखा कि इसमें कोई महांन गुण- वत्ता है, बल्कि इसलिए लिखा कि अंग्रेजगण भारतीयों की पोलपट्टी जानकश उन पर चिरस्थायी शासन कर सकें। केवल निहित स्वाथं के कारण अंग्रेनों ने संस्कृतका




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