प्रेमचंदोत्तर हिन्दी उपन्यासों में वर्ग संघर्ष | Premchanddotar Hindi Upanyason Men Varg Sanghrash

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Book Image : प्रेमचंदोत्तर हिन्दी उपन्यासों में वर्ग संघर्ष - Premchanddotar Hindi Upanyason Men Varg Sanghrash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-सूची प्रथम अध्याय জগ-মঘর্থ : सैद्धान्तिक स्वरूपवि्तेषण, 17-66 यर्ग शब्द की व्यास्या व्युत्पत्ति मुलक दृष्टि से, सघर्ष शब्द की व्याब्या व्युलत्तिमूलक दुष्ठि से, सघपं की प्रकृति : चेतनता, वैषक्तिफता, अनिरनन्‍्तरता सा्वेधौतिकता, संघर्ष के प्रकार, यर्ग-सघर्थ! पारिभाषिक स्वरूपविश्लेपण (मावसवादी परिप्रेक्ष्य मे), 'वर्ग-सघर्ष बे संडान्तिक विवेचन, 'सर्वहारा' तथा 'पूँजीवादी' वर्गों की उत्पत्ति के सिद्धान्त, इन्द्वात्मक भीतिकवाद (791915005-018150781575)। মান के इन्द्र वाद वी विशेष- ताएँ .“अन्त निर्भरता, गतिशीलतता, परिवतंनशीलता, भावात्मक तथा गुणात्मक परिवततेन, भान्तरिकं विश्लेषण, भोतिकवादी दर्शन का आरम्भ, माव्स के भौतिक दर्शन को पिशेषताएंँ, यान्त्रिक भौतिकवाद तथा द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, पूंजीवादी व्यवस्था की शोषक प्रवृत्तियो का विरोध, व्मवस्था-परिवतेनो म जन-आगन्दोलनो तथा प्रातिकारियो की भूमिका, सर्वेहारा-वर्ग या श्रमिक-वर्ग की क्रान्ति, सामाजिक तथा समाजवादी क्रान्ति, संहारा वर्गे का आधिपत्य एव अधिनायकत्व, वरग-विहीन समाज की अवधारणा, वगे-सघपं समाजणास्त्रीय स्वरूप विवेचन, “वर्ग शब्द की समाजशास्त्रीय व्याख्या, उच्च, मध्य तथा निम्त वर्गों की उद्भावना के सामाजिक कारण, सामाजिक वर्गों की सरचमा, वर्ग विभाजन - समाजणशास्त्रीय दृष्टि से, भारतीय सामाजिक संरचना तथा बर्ग-भावना, वर्णाधम व्यवस्था' का वर्ग-भावना के परिसदर्भ में मूल्यादन, भारतीय समाज व्यवस्था में वर्ग-सघर्ष की प्रेरव परिस्थितियाँ एवं प्रवृत्तियाँ, निष्कर्ष ।




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