आंगन गलियां चौबारे | Aangan Galiyan Chaubare
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कांपते, लड़खडाते, जर्जर सुरेश जोशी को सीढ़ियों से लुढकने की चाल
में उतरते पाकर घबराया हुआ अजीत बोला था---“मौसी ! ***कही ***कही
वह किसी मोटर था ट्रक से टकरा न जाए ??
और उपेक्षा से मुस्कराकर सवाल पर सवाल दाग दियाथा जया
भौसी ने-- सच ?***तुझे लगता है कि जोशी के पास पैर है?
स्तब्ध देखता ही रह गया था अजीत 1
“नहीं रे !'“पैर ही नही है उसके । पैर होते तो इस तरह मिला होता
तुझे ?' फिर हिस्की के कई घूट उतारते के वाद वह बुदबुदाथी थी--
'निर्श्चित रह ! ऐसे टकराने का कोई मतलव नहीं होता । टकराते तो वे है,
जिनके अपने पैर होते है। उधार के पैर लेकर कही जीवननयात्रा की जाती
है् रे ? ५०
यही से तो जया मौसी की. वह कहानी फिर से शुरू हुई थी जो गली-
पार हो जाने के बाद अजीत को मालूम नही रही थी। और यही से वे वहुत-
सी कहानियां भी चुल्लू-चुल्लू आ जुड़ी थी जो गली मे घुट रही थी और
जव गली-पार जया मोसी कहाती झेल रही थी, तब गली में अजीत से जुडे
लोग भी कहानिया झेल रहे थे ~
पर इस समय जया मौसी की कहानी ***
तुम्हें कितना खोजा था मौसी ?***मास्टरजी खुद पुलिस स्टेशन गए
थे। पर उन्होंवे कोई मदद नही की। मोठे बुला ने बतलाया था--सारे
पुलिसिए सिर्फ नया भविष्य खोजने में लग गए थे--पसद्धह अगस्त था मे
उस दित ?**० अजीत ने उन्हें झकेझार कर ह्विस्की से जगाया था। इसी
तरह झकझोरकर कहानी कुरेदनी होगी*
जया मौसी--चन्दारानी--ने घूंट भरा था। पलक मूदकर वीली
धी--'हा अ्'“भविष्य की खोज मे ही मैं निकली थी उस दिन “सुरेश भी
उसीकी खोज में था।*““असल मे अजीत, नया कुछ नहीं था वह ! सब
अपना-अपना भविष्य ही तो खोजते हैं--भूत को सहेजे हुए'* भूत को छेड़ने
कौ कोशिश करते दए”.
गलियां / १७
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