आंगन गलियां चौबारे | Aangan Galiyan Chaubare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कांपते, लड़खडाते, जर्जर सुरेश जोशी को सीढ़ियों से लुढकने की चाल में उतरते पाकर घबराया हुआ अजीत बोला था---“मौसी ! ***कही ***कही वह किसी मोटर था ट्रक से टकरा न जाए ?? और उपेक्षा से मुस्कराकर सवाल पर सवाल दाग दियाथा जया भौसी ने-- सच ?***तुझे लगता है कि जोशी के पास पैर है? स्तब्ध देखता ही रह गया था अजीत 1 “नहीं रे !'“पैर ही नही है उसके । पैर होते तो इस तरह मिला होता तुझे ?' फिर हिस्की के कई घूट उतारते के वाद वह बुदबुदाथी थी-- 'निर्श्चित रह ! ऐसे टकराने का कोई मतलव नहीं होता । टकराते तो वे है, जिनके अपने पैर होते है। उधार के पैर लेकर कही जीवननयात्रा की जाती है्‌ रे ? ५० यही से तो जया मौसी की. वह कहानी फिर से शुरू हुई थी जो गली- पार हो जाने के बाद अजीत को मालूम नही रही थी। और यही से वे वहुत- सी कहानियां भी चुल्लू-चुल्लू आ जुड़ी थी जो गली मे घुट रही थी और जव गली-पार जया मोसी कहाती झेल रही थी, तब गली में अजीत से जुडे लोग भी कहानिया झेल रहे थे ~ पर इस समय जया मौसी की कहानी *** तुम्हें कितना खोजा था मौसी ?***मास्टरजी खुद पुलिस स्टेशन गए थे। पर उन्होंवे कोई मदद नही की। मोठे बुला ने बतलाया था--सारे पुलिसिए सिर्फ नया भविष्य खोजने में लग गए थे--पसद्धह अगस्त था मे उस दित ?**० अजीत ने उन्हें झकेझार कर ह्विस्की से जगाया था। इसी तरह झकझोरकर कहानी कुरेदनी होगी* जया मौसी--चन्दारानी--ने घूंट भरा था। पलक मूदकर वीली धी--'हा अ्‌'“भविष्य की खोज मे ही मैं निकली थी उस दिन “सुरेश भी उसीकी खोज में था।*““असल मे अजीत, नया कुछ नहीं था वह ! सब अपना-अपना भविष्य ही तो खोजते हैं--भूत को सहेजे हुए'* भूत को छेड़ने कौ कोशिश करते दए”. गलियां / १७




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