चिन्ता | Chinta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - Sachchidananda Vatsyayan 'Agyey'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेता है. कवियां ने वहा है कि शका मनुष्य काजम सिद्ध अधिकार
है, कितु अगर एसी वात है ता हमने अपन अधिकार वा वभी प्रयोग
नहीं किया। मानव-जाति इतनो अधिक विश्यास्ती है वि अपने
वियद पी विरद्ध भी अपनी इच्छित बात पर विश्वास वर लती है।
सहह उठा है, कितु केवल उतने ही जितन से अपने विश्वासा
बी मिदास का अनुभव हो जाय ।
क्भीनजभी--शायद सदी मे झुक थार--छुक व्यक्ति ऐसा
তাল हाजाता है जिस वी बामना की अपेक्षा उस वा विवेव अधिक
क्रियाशीन होता है और रत्ता है । ऐसा व्यवित संसार मं तहलवा
मचा द॑ता है, किनु सुखो बभी नहीं ह पाता संसार भर के दे य,
दद्दर दुम छित्रा हुआ नित्य भगव तथ्य उस वी आख़ा के
जागे नाचता रहता है, जौर उसे वास्तव का भुला बर इच्छित वी
स्थापना का समय नही दत्ता) समार उसके काम को टेस वर सम
चता हैं कि उसने बहुत कुछ किया विन्त इसी विवेक व आधिवपवे
कारण मसार वी ब्रुटिया वी निकटतम अनुभूति के कारण बह
अपने आप का एसा विश्वास नहीं हिला वाता । बह आजीवन वैसा
ही क्षुघ्र जोर उणान्त चला जाता है जसा जीवन के आरम्भ
भया
मैंने समस लिया, में भी ऐसा ही प्राणी हूँ।
यह थी मरी कहानी को गति ।
ঘুষ भे अपने हृदय की अनुभूति इतनी तांब्र थी विः मैंने बभी
यर नने समाति उसे भी हृदय हो सकता है। मैं समझा वह एक
भुदर ची टै माकारमौदय कितु वटोर जनग, जिसका
ऊपरी जावरण मात्र स्पश्य है. शायद--निश्चय- इसी लिए मरे
प्रेम पे क्वास्तविकता रहती भी, कया कि छुदर पत्थर से प्रेम नहीं
विया जाता।
तब एक हिन मैंन देखा, उप्त के भी हृदय है, एक श्रज्वलित
हृदय, तब मैंने उमर के ताप मे ही अपनी प्रस्तर प्रतिमा गला
डाली और एक नयी प्रतिमा का पिर्माण क्या--एक नयी
प्रतिमा पयी--और यह नयी प्रतिमा थी एक सजी, मानवी--
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