प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | Prakrit Bhasha Aur Sahitya Ka Alochnatmak Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
673
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख
साहित्य-पाथोनि धि-मन्थनोत्थं कर्णामृतं रक्षत हे कवीन्द्राः
-- विक्र ° च १।११।
संस्कृति की आत्मा साहित्य के भीतर से अपने रूप-लावण्य को अभिव्यक्त करती
है । इसी कारण साहित्य सामाजिक भावना, क्रान्तिमय विचार एवं जीवन के विभिन्न
उत्थान पतन की विशुद्ध गभिव्यञ्जना है! यह् समाज के यथायं स्वरूप को अवगत करने
के लिए मुकुर है और है संस्कृति का प्रधान वाहन । साहित्य किसी भाषा, देश, समाज
या व्यक्ति का सामयिक समथेक नही होता, अपि तु यह् सावदेधिक ओर सा्वंकालिक
नियमो द्वारा परिचालित होता है। ससार की समस्त भाषाओ में रचित साहित्य में
जान्तरिक रूप से भावो, विचारो, क्रियाकलापो और आदर्शों का सनातन साम्य-सा पाया
जाता है। यतः क्रोध, हषं, अहङ्कार, करुणा सहानुभ्रति कौ सावधारा जौर जीवन
मरण कौ समस्याएं एक-सी है । प्राकृतिक रहस्यो से चकित होना, सौन्दर्यं को देखकर
पुलकित होना, कष्ट से पीड़ित व्यक्ति के प्रति सहानुभूति का जाग्रत होना एवं बालसुलभ
चैष्टाओ को देखकर वात्सल्य से विभोर हो जाता मानवमात्र के लिए समान है। अतएव
साहित्य मे साधना और भनुभ्ृति के समन्वय से समाज ओर संसार से ऊपर सत्य और
सौन्दर्य का चिरन्तन रूप पाया जाता है। साहित्यकार चाहे किसी भी भाषा में साहित्य
सृजन करे अथवा वह किसी भी जाति, समाज, देश और धर्म का हो, अनुभूति का
भाण्डार समान रूप से अजित करता है। वह सत्य और सौन्दयं की तह मे प्रविष्ट हो
अपने सानस से भावराशि रूपी मुक्ताओ को चुन-चुन कर शब्दावली की छड़ी मे शिव
की साधना करता है ।
सौन्दर्य पिपासा मानव की चिरन्तन प्रवृत्ति है। मानव अपनी विभिन्न समस्याओं
के समाधान के लिए सतत प्रयत्नशोल रहता है, फिर भी सौन्दय॑ वृत्ति की तुष्टि के हेतु
ग्रीष्म की उष्मा, वसन्त की सुषमा और दरइ की निमंलऊता से प्रभावित होता है । विश्व के
कण-कण मे सौन्दयं मौर आनन्द का अमर प्रवाह उसे हृष्टिगत होता है। परन्तु सहृदय
कवि या लेखक ही इन्द्रिय-संवेद-नया कल्पना द्वारा सौन्दयं का भाषन या आस्वादन कर
साहित्य का सृजन करता है । प्राकृत भाषा के साहित्य सरष्टा ने चिरन्तन सौन्दयं की
अनुभूति को साहित्य मे रूपायित कर अमूल्य मणियो का प्रणयन किया है । जीवन-संनोग
भौर प्रणयचित्रो की यथेष्ट उद्मावना की गयी है । प्राकृत काव्यो में प्रकृति और मानव
के प्रणय-व्यापार-सम्पक्त अनेक चित्र वर्तमान हैं। हृदय स्थित सौन्दर्यानुभूति को देश,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...