प्राचीन सभ्यता का इतिहास | Pracheen Sabhyata Ka Itihas

Pracheen Sabhyata Ka Itihas by डॉ. मनोहर आर. वाधवानी - Dr. Manohar R. Wadhwani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका रे च बेहतर क्षमता का उपयोग किया गया ताकि पत्थर के औजार हथियार और पुर्ज बनाये जा सके । इस युग का नाम खाद्य-उत्पादको अथवा कृपको का युग भी दिया गया है । प्रो० डेविस के अनुसार उत्तर पापाण मानव आज के मनुष्य के सीधे पुर्वज हैं । नवप्रस्तर सानव की निम्नलिखित उपलब्धियाँ थी --- आवात--उत्तर पापाणकाल मे मनुष्य ने आवास के रूप मे गुफा का त्याग करके एक ऐसे प्लेटफार्म पर लकड़ी का मकान बनाया जो झील के किनारे पानी की सतह के कपर था 1 ऐसे प्लेटफार्म लट्ठो के सहारे खडे थे । डा० जे० एस० बेस्टेड इस ओर ध्यान दिलाते है कि बेंगर स्विटजरलैंड से लगभग ५० ००० लट्ठे ज्ञीलो के चारो ओर याँवो को सहारा देने के लिये खड़े किये गये थे । उनके मकान सुविधादुर्ण थे और उनसे लकड़ी का फर्नीचर था । शासन--अधिकाश परिवारों ने अपने मकान पास-पास बनाये थे भर वे एक छोटे गाँव के रूप ने थे । कुछ गाँव वाणिज्य तथा व्यवसाय के केन्द्र वन गये थे और शीघ्र ही नगर बन गये । यही पर सरकार का बीज बोया गया जो एक नेता के अतर्गत सगठित हुई । यह उसका कर्त्तव्य था कि वह जीवन तथा सपत्ति की रक्षा करे गौर उसके एवज मे कर के रूप मे किसानो के फसल का एक भाग पाये । इस प्रकार सरकार अस्तित्व में आयी । कृषि--खेती करने की कला को पाषाणकालीन मानव का एक विश्मयजनक परिवर्तन माना जा सकता है । कब और कैसे मानव ने बीज वोये और फसल काटने की कला सबसे पहले सीखी यह एक रहरय ही है । हल और फावडा खेती के मुश्य गौजार थे । अव लोगो ने खेती के लिये घरती के टुकड़े का स्वामित्व लेना प्रारम्भ किया जिसने समाज को दो भागों मे विभक्त किया. भूमिस्वामी तथा २ुमिहीन । इससे इन दोनों के बीच एक शाश्वत सघर्ष का प्रारम्भ हुआ--एक ऐसा सघर्ष जो पहले अस्तित्व मे नही था । पशुओ को पालतु बनाना---केसे और कब पशुओ को पालतू बनाया जाने लगा और उनका प्रजनन कब शुरू हुआ यह अधकारपूर्ण है । डा० डुरान्ट का कथन है कि एक विशिष्ट सामाजिक प्राकृतिक सामाजिकता ने समझदार तथा चन्य पशुओ के बीच सहयोग का सूत्रपात किया होगा । कुत्ता बकरी गाय सुअर वैल तथा घोडा वे मुख्य पशु थे जो पालतू बनाये गये । लगता हैँ पापाण काल के मानव ने गाय के दूध को आहार बनाया था । बुनते को कला--वुनना भानव की प्रारमिक कलाओ मे से है । उसने यह कला मकडो के जाल बुनने अथवा पक्षी के घोंसला बनाने से सीखी होगी । डा. बिल डुराट का कहना है पत्तियों के छाले और घास के रेशों को कपडो दरियो और कसीदाकारी




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