अंकुर | Ankur

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श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंकुर १७१ बोनेमाँ चुप हो गया । उसकी निगाहे बस्ती की ओर गई जहाँ से एक के बाद एक प्रकाश की किरणों टिमटिमाती नजर झा रही थी । बया तुम्हारी कपनी मानदार है ? लॉतिये ने पूछा । बुड्ढे ने श्रते कथे उचकाय प्रौर उन्हें फिर इस प्रकार ढीला छोड़ दिया मानों वह सोने के शिलाखंड के तीचे दवकर वेचेन्नी अनुभव कर रहा হী | श्रो ! हाँ ! ओ ! हाँ ! शायद उतत्ती धनी नहीं जितनी कि इसकी पडोसी अंजिन कम्पनी है । लेकिन लखपति लखपति सत्र बराबर है। वे उसे गिन तो सकते नहीं । उन्नीस खाने, तेरह म काम चालु ट । वोरा, विविटियोरे, मिराग्रो, सेंट टामस मेडेलेन, फ्यूद्री-केंटल तथा और बहुतेरी, रिक्वीला की तरह सवातन या पानी निकालने के लिए छः खाने । दस हजार काम करने वाले मजदूर, सरसठ5 कम्यूनों से अधिक कंसेशन, पाँच हजार टन प्रतिदिन उत्पादन, सभी खानों को जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन और कारखाने, फंविट्रयां ! ओह ! हां, दोलत ही दौलत भरी पड़ी है ।' मचानों पर द्वामो की खड़खड़ाहट से घोड़े ने कान खडे किये । नीचे, कटघरे की मरम्मत की जा चुकी थी और ठेला-मजदूर पुनः काम पर जुट गए थे। नीचे उतरने के लिये जब वह अपने घोडे की फिर से कस रहा था तो उससे बड़े प्रेम से घोड़े को सम्बोधित करते हुए कहा-- धप्पबाजी से काम नहीं चलेगा सुस्त, निकम्मा | श्रगर हनेव्यू को मालुम पड़ जाय कि तुम किस तरह अपना समय जाया करते हो...' लॉतिये ने विचारमग्न हो अंधकार की ओर देखा তন पूछा-- 'तब मोशिये हनेव्यू खान के मालिक है ' नही , वृद्ध ने सफाई दी, 'मोदिये हनेव्यू सिफं जनरल-मेनेजर है, उन्हे हमारी ही भाँति वेतन मिलता है ।' लॉतिये ने अंधकार की ओर संकेत करते हुए पूछा-- तब, यह सब किसका है ?' लेकित बोनेमाँ को कुछ क्षण के लिए खांसी का इतना तेज दौरा उठा कि वह सांस तक न ले सका | फिर, बलगम थूक कर अपने होठों की काली परत को पोछने के बाद उसने तूफान के तेज कोके के बीच उत्तर दिया-- “प्रोह ! यह्‌ सब किंसका है ? कोई नहीं जानता ; उन लोगों को और अपने




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