अंगारे न बुझे | Angare Na Bhujhe

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Angare Na Bhujhe by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तिरिया তই নাল দিল্লী के चुम गई । उसे लगा--जीना बेकार है और एक दिन जो वह कहीं चला गया, तो आज दिखाई दिया। और आज अब सबने उस पर आंखें डालीं तो दृष्टि अपने आप ठहर गई; क्योंकि वह आगे-आगे था और उसके पीछे भी कोई थी । लोगों ने आश्चर्य से देखा; वह कोई औरत थी ओर फिर सबने आपस में कहा कि-- भाई अब तो अमोली का बेय पिल्ली सचमुच एक बैयर ले आया।? वह स्री भारी और मोद लहँगा पहने, पॉव में भारी कड़े, और चमरौंवा जूता डाटे थी। हाथों में चूड़ियाँ थीं, धूँबट काढ़े थी और युवती थी। यह लोगों की ईर्ष्या का कारण था | वे चाहते थे कि कोई अधेड़ सी होती तो पिल्ली की चाची कह कर चिढ़ाते, पर वह आशा व्यथं हो गई । श्रने वालीखी किसी तरह मी जमीन पर हल्का पौव नहीं रखती थी, जैसे उसने धरती को पराया नहीं समा श्रौर उस पर उसका अपना ही अ्रधिकार था । गाँव वालों ने देखा और ऊपर उठा कर जूड़ा बाँधने से उल्टी हॉड़ी सी खोपड़ी बाली मैनी मुस्कराई; चर्चा चली, मोपड़ियों और घरों में चबर-चबर हुई श्रोर इव गई । परन्तु यह किसी की समर में नहीं आया कि पिल्ली लुगाई ले कहाँ से आया १ (बादलबूकाः के जगपत बामन, जो “बिधोलिया? के मूल बामन थे, जिनका कुनबा मिक्षुकी करता था, अब रियासत की पुलिस में सिपाही हो गए थे, इस घटना से प्रभावित हुए और उनकी इच्छा समस्त व्यापार को अपने फायदे की ओर मोड़ लेने की हुईं । परन्तु पिल्ली की औरत ने उन्हें पहले धृत्रट और उंगलियों के बीच से देखा, फिर एक बार उसके हेसते दए होऽ जिनमें से सोने की कील टके दाँत दिखाई दिये और फिर वह धूत्रट उनके लिए, ऐसे गिर गया जैसे रात का पर्दा गिर जाने पर सब ओर अन्घेरा छा जाता है ओर न खेत दिखाई देता है, न बिजका, बस चरेरू को उड़ाने के लिये उठी हरया की आवाज




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