भाव - विलास | Bhaw - bilas

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Bhaw - bilas by श्री लच्मीनिधि चतुर्वेदी - Shree Lchminidhi Chturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२-विभाव दोहा जे बिशेष करि रसनि को, उपजावत हैं भाव) भरतादिक सतकवि सवै, तिनको कहत बिभाव ॥ ते विभाव द्वे मांति ॐ, कोषिद्‌ कहत बखानि | आलम्बन कहि देव अर्‌, उदीपन उर आनि ॥ शुब्दाथ---रसनिको-रसो का | उपजावत-उत्पन्न करते हैं | भावाथें--जो भाव रसो को उत्पन्न करते हैं उन्हें भरतादिक आचाय विभाव कहते हैं | विभावों को कवियों ने दो तरह का कहा है ! एक आलमग्बन और दूसरा उद्दीपन । (क) आलम्बन दोहा रस पले श्रालम्बि जिह, सा आलम्बन होइ । रसहि जगावै दीप ज्यो, उहीपन कटि सेई ॥ शब्दाथ---उपजै-उत्पन्न हो | आलग्बि-आश्रय पाकर । ¢ ^~ না भावाथे---जितका आश्रय पाकर रसों की उत्पत्ति होती है, उसे आलस्बन और जो रसों को उद्दीक्त करने हैं वे उद्दीपन कहलाते हैं।




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