भारतीय साहित्य शास्त्र | Bhartiya Sahitya Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
34 MB
कुल पृष्ठ :
401
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटी है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गणेश त्रयंबक देशपांडे - Ganesh Trayanbak Deshpande
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनु क्रम णि का +++%कऊ#+ककक कक कक के +
उत्तराद्ध
क
अध्याय नौवाँ - कान्यश्रीर शब्दा्थविचार - पृष्ठ १५१-१६४
১০৬,০০০
व्याकरणस्य पुच्छम् - साहित्यशास्त्र में पदवाक्यविवेक - वाक्यगतग पदो के
वैशिष्टय - वाक्य और महावाक्य ~ वाक्या्थैबोध श्रमिहितान्वयवाद -
वाक्यार्थबोध भ्रन्विताभिधानवाद - इन दोनो मतो का समुच्चय -
वाक्यार्थबोघ ` श्रखण्डाथंवाद ।
अध्याय दसवाँ ~ शाब्दबोध् _ वाच्याथं, वाचकडाब्द मरौर प्रभिधा - पृष्ठ १६५- १७७
ज ट
शब्द कौ तीन वृत्तिर्या - व्यजनाव्यापार काव्य मे ही होता है - भभिधा_
और वाच्यवाचक सबंध - सकेत का अ्रथ क्या है ? -सकेतित अर्थ के भेद ती
वैय्याकरणो का सकेतविषयक मत - मीमासकौ का मत - व्यवितबोध किसं
प्रकार होता है ? - मुख्याथ और श्रभिधा ~ प्रभिधा के भेद ।
अध्याय ग्यारहवॉ-शाब्दबोध लक्ष्यार्थे, लाक्षरिक शब्द और लक्षणा -
पृष्ठ १७९६-१६ १
लक्षणा के निमित्त - रूढ लक्षणा की पृष्ठभूमि में आरभ में प्रयोजन था
ही - लक्षणा सान्तराथंनिष्ठ व्यापार है - लक्षणा का उचित प्रयोग और
अनुचित प्रयोग - वाक्यार्थवाद और लक्षणा - लक्षणा का आधारभूत
प्रयोजन व्यग्य होता है।
अध्याय बारहवाँ - शाब्दबोध . व्यंजनाव्यापार - पृष्ठ १६२-२१०
लक्षणामूल ध्वनि - प्रयोजन द्वितीय लक्षणा से ज्ञात नही होता - विशिष्ट
लक्षणा भी सभव नही है -मीमासकों की ज्ञानप्रक्रिया - अभिधामूल
व्यजना - अ्रभिधा, लक्षणा तथा व्यजना में सबंध -व्यजना का सा्मीन्य
लक्षण - व्यजना अर्थवृत्ति भी है (आर्थी व्यजना) - व्यजना के भेद -
व्यंजनाविभाग पर आशका तथा समाधान -व्यग्यार्थ समभने के लिए
प्रतिभा आवश्यक है ।
अध्याय तेरहवाँ - व्यंग्यार्थ (ध्वनि) - पृष्ठ २११-२३६
व्यग्याथं ~ प्रतीयमान-ध्वनि ~ लौकिक तथा श्रलौकिक ध्वनि - सलक्ष्य
क्रम तथा भ्रसलक्ष्यक्रम - रसादि ध्वनि क्वचित् पलक्ष्यक्रम भी हौ सकता
है ~ ध्वनि के भेद ~ व्यजकता के भेद - रसव्यजकता के कुछ प्रकार -
वाक्य को रसादिव्यजकता - रसादि ध्वनि ही वास्तव मे काव्यात्मा है ।
सत रह् + ५५५५५५१५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...