भारतीय साहित्य शास्त्र | Bhartiya Sahitya Shastra

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Bhartiya Sahitya Shastra by गणेश त्रयंबक देशपांडे - Ganesh Trayanbak Deshpande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनु क्रम णि का +++%कऊ#+ककक कक कक के + उत्तराद्ध क अध्याय नौवाँ - कान्यश्रीर शब्दा्थविचार - पृष्ठ १५१-१६४ ১০৬,০০০ व्याकरणस्य पुच्छम्‌ - साहित्यशास्त्र में पदवाक्यविवेक - वाक्यगतग पदो के वैशिष्टय - वाक्य और महावाक्य ~ वाक्या्थैबोध श्रमिहितान्वयवाद - वाक्यार्थबोध भ्रन्विताभिधानवाद - इन दोनो मतो का समुच्चय - वाक्यार्थबोघ ` श्रखण्डाथंवाद । अध्याय दसवाँ ~ शाब्दबोध्‌ _ वाच्याथं, वाचकडाब्द मरौर प्रभिधा - पृष्ठ १६५- १७७ ज ट शब्द कौ तीन वृत्तिर्या - व्यजनाव्यापार काव्य मे ही होता है - भभिधा_ और वाच्यवाचक सबंध - सकेत का अ्रथ क्या है ? -सकेतित अर्थ के भेद ती वैय्याकरणो का सकेतविषयक मत - मीमासकौ का मत - व्यवितबोध किसं प्रकार होता है ? - मुख्याथ और श्रभिधा ~ प्रभिधा के भेद । अध्याय ग्यारहवॉ-शाब्दबोध लक्ष्यार्थे, लाक्षरिक शब्द और लक्षणा - पृष्ठ १७९६-१६ १ लक्षणा के निमित्त - रूढ लक्षणा की पृष्ठभूमि में आरभ में प्रयोजन था ही - लक्षणा सान्तराथंनिष्ठ व्यापार है - लक्षणा का उचित प्रयोग और अनुचित प्रयोग - वाक्यार्थवाद और लक्षणा - लक्षणा का आधारभूत प्रयोजन व्यग्य होता है। अध्याय बारहवाँ - शाब्दबोध . व्यंजनाव्यापार - पृष्ठ १६२-२१० लक्षणामूल ध्वनि - प्रयोजन द्वितीय लक्षणा से ज्ञात नही होता - विशिष्ट लक्षणा भी सभव नही है -मीमासकों की ज्ञानप्रक्रिया - अभिधामूल व्यजना - अ्रभिधा, लक्षणा तथा व्यजना में सबंध -व्यजना का सा्मीन्य लक्षण - व्यजना अर्थवृत्ति भी है (आर्थी व्यजना) - व्यजना के भेद - व्यंजनाविभाग पर आशका तथा समाधान -व्यग्यार्थ समभने के लिए प्रतिभा आवश्यक है । अध्याय तेरहवाँ - व्यंग्यार्थ (ध्वनि) - पृष्ठ २११-२३६ व्यग्याथं ~ प्रतीयमान-ध्वनि ~ लौकिक तथा श्रलौकिक ध्वनि - सलक्ष्य क्रम तथा भ्रसलक्ष्यक्रम - रसादि ध्वनि क्वचित्‌ पलक्ष्यक्रम भी हौ सकता है ~ ध्वनि के भेद ~ व्यजकता के भेद - रसव्यजकता के कुछ प्रकार - वाक्य को रसादिव्यजकता - रसादि ध्वनि ही वास्तव मे काव्यात्मा है । सत रह्‌ + ५५५५५५१५




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