चीवर | Chiver
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैश्य ही कहता था। पायांत्र वैरात का राजा उन दिनों वैश्य तथा षि
देश का शासक शुद्ध या |
सेनाओं पर व्यय बहुत होता या । नगर के प्राकार सुददद ये, और
श्रेणियों में शिल्प व्यवसाय विभक्त था; यदि शिल्पी प्रतिज्ञा करके कार्य
पूर्ण नहीं कर पाता था तो उसे दास बना लेना संभव था, ओर वह
अपने दासत्व से घन चुका कर ही छूटता या |
देवगुप्त की वासना दिन पर दिन बढती ही जा रही थी |
%
रात्रि के अंधकार में किसी ने धीरे से द्वार थपथपाया | नगर के
निम्न भेणी के लोग इस भाग में रहते थे । थोढ़ी देर तक कोई उत्तर
नहीं आया । तब वह थपथपाने वाला कुछ देर खड़ा रहा और फिर
ऊत कर बुखुराने लगा : श्रच्छा काम है। सो गई होगी ।
इसी समय वातायन मे से किसी ने कॉक कर कहा : कौन है !
किर जी का हास्य सुनाई दिया : भण्ड !
द्वार खुल गया । एक बौनां हाथ में मशाल लिए चलने लगा |
आंगन्तुक पीछे-पीछे चल पढ़ा । द्वार फिर बन्द हो गया।
धर छोटा था। सामने एक श्रलिंद था । उसके दोनो श्रोरदो
कोठरियाँ थीं, जिनमें केवल द्वारये और फिर दूसरी मंजिल थी।
श्रागन्दुक ऊपर चला शया । उसने देखा एक खी शैय्या पर पड़ी यी ।
बौना जाकर उसके सिर को दबाने लगा। दूसरी स्नरी भीतर चली गई |,
भण्ड बैठ गया । भीतर जाने बाली ज्री हंसती हुई लौट आई और
उसने उसके सामने एक रोटी, कुछ मास रख दिया । वह पीले नेत्र की
हली हण थी । भण्ड एक ज््री के रहते दूसरी ली को के आया था।
“क्या संवाद है १ वामन ने अपने कूबड़ को और उचका कर पूछा ।.
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