चीवर | Chiver

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chiver by रागेय राघव - Ragey Raghav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangeya Raghav

Add Infomation AboutRangeya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वैश्य ही कहता था। पायांत्र वैरात का राजा उन दिनों वैश्य तथा षि देश का शासक शुद्ध या | सेनाओं पर व्यय बहुत होता या । नगर के प्राकार सुददद ये, और श्रेणियों में शिल्प व्यवसाय विभक्त था; यदि शिल्पी प्रतिज्ञा करके कार्य पूर्ण नहीं कर पाता था तो उसे दास बना लेना संभव था, ओर वह अपने दासत्व से घन चुका कर ही छूटता या | देवगुप्त की वासना दिन पर दिन बढती ही जा रही थी | % रात्रि के अंधकार में किसी ने धीरे से द्वार थपथपाया | नगर के निम्न भेणी के लोग इस भाग में रहते थे । थोढ़ी देर तक कोई उत्तर नहीं आया । तब वह थपथपाने वाला कुछ देर खड़ा रहा और फिर ऊत कर बुखुराने लगा : श्रच्छा काम है। सो गई होगी । इसी समय वातायन मे से किसी ने कॉक कर कहा : कौन है ! किर जी का हास्य सुनाई दिया : भण्ड ! द्वार खुल गया । एक बौनां हाथ में मशाल लिए चलने लगा | आंगन्तुक पीछे-पीछे चल पढ़ा । द्वार फिर बन्द हो गया। धर छोटा था। सामने एक श्रलिंद था । उसके दोनो श्रोरदो कोठरियाँ थीं, जिनमें केवल द्वारये और फिर दूसरी मंजिल थी। श्रागन्दुक ऊपर चला शया । उसने देखा एक खी शैय्या पर पड़ी यी । बौना जाकर उसके सिर को दबाने लगा। दूसरी स्नरी भीतर चली गई |, भण्ड बैठ गया । भीतर जाने बाली ज्री हंसती हुई लौट आई और उसने उसके सामने एक रोटी, कुछ मास रख दिया । वह पीले नेत्र की हली हण थी । भण्ड एक ज््री के रहते दूसरी ली को के आया था। “क्या संवाद है १ वामन ने अपने कूबड़ को और उचका कर पूछा ।. ~~. ६- ~




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now