शरत साहित्य चतुर्थ भाग | Sharat Sahitya Chaturth Bhaag

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Sharat Sahitya Chaturth Bhaag  by कमल जोशी - Kamal Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ श्रीकान्त पायेके पास चूहेने अपना बिल बनाकर मिट्टी जमा कर रखी है। मेंने उसे दिखाकर कहा, “गोंहर, कमरेमें तुम लोग क्या कमी झौँकते भी नहीं ! ” गोहरने जबाब दिया, “ नहीं, जरूरत ही नहीं पडती। मैं अंदर ही रहता हूँ। कछ सब साफ करा दूँगा। ४ साफ तो हो जायगा, लेकिन इस बिलमें सॉप मी तो रह सकते हैं?!” नोकरने कहा, “ दो थे, लेकिन अक नहीं हैं। ऐसे दिनोंमें वे नहीं रहते, हवा खानेके लिए बाहर चले जाति है| पूछा, “ यह केसे मालूम हुआ मियों ? ”? गोदरने हँसते हुए कहा, “ वह मिर्यों नहीं हैं, अपना नवीन है। पिता- जीके जमानेका आदमी है। गाय-भेंस, खेती-बारी देखता है और मकानकी हिफाजत मी करता है। हमारे यहाँ कहाँ क्‍या है, ओर क्या नहीं है, इसे सब पता है।” नवीन बंगाली हिन्दू है और है पिताके जमानेका आदमी । इस घरकी गाय-मैंसे, खेती-बारीसे लेकर मकान तकका सारा हाल जानना उसके लिए असम्भव नहीं है। तथापि सॉपके बारेमें उसकी बातोंखि निश्चिन्‍न्त न हो सका। यहाँ तो मकान-भरको दक्षिणी दवा छूग गई है' सोचा, इसमें शक नहीं कि हवाके लोभमें सर्प-युगल बाहर जा सकते हैं, परन्तु, उन्हें लोटते भी कितनी देर लग सकती है ! गोहरने ताड़ लिया कि मुझे तसदली नहीं हुई है। कहा, “ ठुम तो खाट- पर रहोगे, फिर तुम्हें डर किस बातका ! इसके अलावा वे करट नहीं रहते ! भाग्यम लिखा था, इससे राजा परीक्षितको भी रिहाई नहीं मिली, फिर हम লী तुच्छ हैं।--नवीन, कमरेमें झाड़ू छगाक्रर एक इंटसे बिकको ढक देना भूलना नहीं ।--पर शऔकऊांत, कहो तो, तुम खाओगे क्या १ मैंने कहा, “जो कुछ मिल जाय । ” नवीन बोला, “दूध, चिबड़ा और अच्छी ईखका गुड़ है । आजके लायक --- मैंने कहा, “ ठीक है, ठीक है। इस मकानमें ये ही चीजें खानेकी मुझे आदत है, और कुछ जुटानेकी जरूरत नहीं, भाई | बल्कि, तुम कहींसे एक हल्‍की इंट ले आओ । बिलको मजबूतीसे ढक दो, जिससे दक्षिणकी हवासे पेट भरकर जब वे घर लोटे तो फिर एकाएक इसमें न घुस सकें । ”




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