शरत-साहित्य श्रीकान्त (चतुर्थ पर्व) | Sharat-Sahitya Shreekant (Chaturth Parv)

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Sharat-Sahitya Shreekant (Chaturth Parv) by कमल जोशी - Kamal Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ श्रीकान्त अरमें ही गजन कर उठता है कि झडे हुए पत्तोकरा गीत गाया जाय । नौकरने आकर बाहरकी बैठक खोल दी और बत्ती जला दी। गौहरने तख्त दिखाते हए कटा, “ तुम इसी कमरेमे रहो । देखना, कैसी सुन्दर हवा आती है । ” असम्भव नहीं है । देखा, कि दक्षिणकी दवाकी वजहसे देशभरकी सूखी हुई छताओं और पत्तोंने गवाक्ष-पथसे भीतर घुसकर कमरेको भर दिया है, तख्तको भी छा दिया है। फर्ीपर पैर पडते ही शरीर सनसना उठा । खाटके पायेके पास चूहेने अपना बिल बनाकर मिट्टी जमा कर रखी है । मैने उसे दिखाकर कहा, “ गौहर, इस कमरेमे तुम लोग क्या कभी झाॉँकते मी नही” गौहरने जवाब दिया, “ नहीं, जरूरत ही नही पडती । मैं अंदर ही रहता हूँ । कल सब साफ करा दूँगा। ”? £ साफ तो हो जायगा, लेकिन इस बिलम सॉप भी तो रह सकते हैं ?” नौकरने कहा, “ दो थे, लेकिन अब नहीं हैं | ऐसे दिनोमें वे नही रहते, हवा खानेके लिए बाहर चले जाते हैं । ” पूछा, “ यह कैसे माल्म हुआ मिर्यों !” गौहरने हँसते हुए कहा, “ वह मिर्या नहीं है, अपना नवीन है। पिताजीके जमानेका आदमी है। गाय-भैस, खेती-बारी देखता है और मकानकी हिफाजत भी करता है। हमारे यहाँ कहों क्या है, और क्या नहीं है, इसे सब पता है ।” नवीन बगाछी हिन्दू है और पिताके जमानेका आदमी । इस घरकी गाय-मैसे, खेती-बारीसे लेकर मकान तककां सारा हाल जानना उसके लिए असम्मव नही है। तथापि सॉपके बारेमे उसकी बातोंसे निश्चित्त न हो सका । यहाँ तो मकान-भरकों दक्षिणी हवा छग गई है ! सोचा, इसमे शक नहीं कि हवाके लोभमे सर्प-युगल बाहर जा सकते हैं, परन्तु, उन्हें लौटते मी कितनी देर लग सकती है ! गौहरने ताड़ लिया कि मुझे तसल्टी नही हुई है । कदा, ¢ तुम तौ खाटपर रोगे, फिर तुम्हें डर क्रिस बातका ? इसके अछावा वे कहाँ नही रहते ? भाग्यमे लिखा था, इससे राजा परीक्षितको भी रिहाई नहीं मिली, फिर हम तो तुच्छ हैं ।---नवीन, कमरेसे झाड़ू लगाकर एक ईटसे बिलको ढक देना, भूलना नहीं ।--पर श्रीकात, कहो तो, तुम खाओगे क्‍या १?”




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