संस्कार चन्द्रिका | Sanskar Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.28 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका । (3)
थे साथ होने मे निसक्रोक्त दोष का भागी अब न होना पढ़ेंगा और उन
के लेखानुसार कल्याण की उपलब्धि होगी ।
“संस्कारविधि” का अनुवाद गुजराती साया में हुआ है उसकी छपाई
स्ादि का ढँग अनुवादक ने अच्छा रक्पा है परम्त उस में भी कहीं २
त्रटियो हैं । खबर से पूर्व श्री० स्वासी जी से सेठ केशव छाल नि्भयराम
जी को सहायता ने *एशियादिक प्रेस सम्ब्े सें रास्कारविधि छपाई थी
उस की झअनपादेयता का हेत, स्वासी जा दे तापनी भसिका में स्वय ही
लिखा है । मैंने उसे सेंगाकर देख ती उस में सफे कछ विशेष न सिला ।
ऊपर हस लिख जाए हैं एके दस ने संस्कारविधिस्थ सस्त्रादि के
न्पथे करने में इन य्न्यों वो सहासता लो है । यदि ये सन्थ हमार पास न
होते तो इम कठिन काम को छूम कभी न कर सकते । सपफसो समक से
व्याकरण, निधगट -पि थे हारा दंग सस्त्ों के ऊपर किसी का भाष्य
नहीं है उन मन्त्र दि का सा श्ाष्म कर दिया है सौर जह कहीं जन्य
सरचायोाका साष्ट पौज़द था उसे भी सबच्र जगा फा स्थो रखना उचित नहीं
ममकर किन्त सपने तौर पर उसके सद़ारे में झध दिया रया है, प्रकर-
सादि वश से एक मन्त्र फे नेक सथ मो सकते हैं- यह बात उन को
सविद्ति है जिन्होंने कऋग्वेदा दि के सायगाटिकत भाष्यां को देखा है ।
सापसाचाय ने ** चत्वारिश ड्रा० '” ऋ० स० ४ स० ५ सू० 9८ स० ३
दस मन्त्र की पाँच प्रकार को च्याणया स्थ रपार करके सी 1निस्क्तोक्त खसे
के
प्रकार को सवाकार किया है, पफर लिखा है * शाब्दिकासत शब्दब्रर
डी
परतया ००० व्याचक्नते, सपरे त्वपरतया, तत्सवसत्र ट्रप्ठव्यमू
“यत्वारि वाक परिसिता”० ऋग० स० १ स० रर सू० ९९४ स० ४ को
व्याख्या में भी सायणानाय से स्वीकार किया एऐ कि यहाँ शाडिदक- वैथा-
करण, याज़िक, तथर अन्यान्य, अन्य प्रकर में दयासरूया करते हैं । यह
सब कुछ है पर मेरी ससक हो कितनी ? ' उस पर भी झणि व्याधि
ग्रस्तता ' ऐसा दशा में में समकता हूँ, दर दीप रे, ता प्रसादादि से एक
नहीं, दो नहीं किन्त कई चटियाँ रह गई हांगी, लिन के न्निए में सायं
बिट्न्मगडली से केवल क्षमा न मांग कर प्रमपूदाक सूचना देने को अस्य-
थेना करता हूँ जिससे कि द्वितीयावृत्ति सें, सखलितद्शक सज्जनों को
यवाद देकर ठीक कर टिया जावे ।
“सयुक्तमस्मिन् यदि किंचिदु्तमज्ञानतो वा मतिविभ्रमाद्री ।
सौदाय कारुरय विशुद्ध घी मिर्मनी थि भिस्तत्परिमाजनी यसू ” ।
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