मैथिलीशरण गुप्त का काव्य और उसकी अंतर्कथाओं के स्रोत | Maithilisharan Guot Ka Kavya Aur Uski Antarkathaon Ke Srot

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Maithilisharan Guot Ka Kavya Aur Uski Antarkathaon Ke Srot by शशि अग्रवाल - Shashi Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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খাছ [০ পর তুর छू 1 শী হাহা है হিং শান पुरत दि दश तस वातव्यं भी है | पमहाभा: तो मैं ঈদ प्रशिक्त शास्यण्मों दे सच्टि हृ है { उदार एग शष्दि पर्वं मैं, वुतलीपास्यान , वनपर्व मैं पल शोपश्थानी बौपू एच्मौ- অশহাশল* आर्यद 1 फ्रान्ध कार्यो मैं का शॉप আল্লা বাকা सास मय एएत मएत्च- ভু शिता द । হুড কলা कै জাগে লীন লন্যাধিঘিশার सवित প্বীদটী है। उदाणएत': पमार [दापूवन्पाएउवो की कथा! का মু শপ दै + पान्तु नदष + दवय) गएदि की कथाएँ , जन्‍्तमथाओँ के « प मैं জিনতা की सरथा' में उसे सात जुड़ी हुई हैं | न्दी प्राचीन आस्थानक दताव्यो से उदमत अनैकानिक प्रतम्ध-द्ाव्य आधानिक काल मैं भी लिते गए লী लिसे जा रे हैं |1महाभाएत ^ यि पुर्‌ प्ण और रामायता की शकन्शक अन्तकीया' पर रक-शक प्रबन्धनदाव्य का টোন यन हौ गय है {^ कृषयन^ ई तथा^जयभार्तःर तौ सम्पूण महाभारतः पर्‌ शाधारित हैं । कृषापयन मैं महाभापता का सारश कुचाए के साथ अत्यन्त सुन्दाता से सम्बद्ध है, ततात जयभाषुता मैं युतिापष्ठिर करी प्रमुतता' दैत द्रु “नदा भापुती की कथाः কা संचपाा' किया गया' है। फ्न्‍्लु माशभमारत' की इक ही লতা অহ आधुनिककाल पै ^शक्लव्य^र महाकाव्य की रचनाः हुए । साह-का-व्य ती' अनैक ভি শু £ । দল ४ वेक-सौहपए ,जयद्थ बध , ভিভিম্লাণিও গন্ডি वाह काव्य महामारत की छोटी छोटी घटनाओं पर भाधारित हैं | हसी प्रकाए वात्मीकिल्शामायाणश फे आधा प्‌ शक रभ्य की परचम ट आधुनिक काल यै प्तः च क गुष्त जी चै उसका एक नया रूप उपस्थित গর ৭৯৭88 কারার পরান সরা চ বা সারতে, জরা বা ধরা আলা সক এর हः पतैः अथा- सी गतीः मो, अवः টাল त निः अनि देके भति शः पोः के तरः सिः जः गेति शमः विहि तिः शः रः भिः सि सतति, তেন বড उवः +त রাহ জার, গাম রী को भह कितः तैः चति ३00९ पैक तक सः आतिः £ - कशानयथन- दाएकापएसाद मिश्च 1 অপলালে টিন 4 $ २ ३ ष्ट ४ & ৬




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