निराला : व्यक्तित्व और कृतित्व | Nirala : Vyaktitv Aur Krititv

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Nirala : Vyaktitv Aur Krititv  by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ৭ ) व्येय कभी रहा ही नहीं! धन उनके पास अतिथि के समान अटपावधि तक ही टिकने आता था । अगर हजार आया तो डेढ़ हजार क खच क खिदृठा पहले से तैयार है | अभावत्रस्तों के अभाव उनके दिमाग के হাই में मेँंडराले रहते थे। भर पेट खाने के निए तससने ना निकौडिये से लेकर मेहनत-मशक्‍्कत करनेवाले मजदूर तक उनकी निगाहों मँ बसे [५ थे और जब कभी उनके मर्माफिक अवलाभ हो जाता, वे तुरन्त ` मरभवखों की ओर दौड़ जाते । 'जिनके लह॒हिं न मंगन नाही, तै नर वर थोरे जग माहीं--उन्ही थोड़े लोगों में वे भी एक थे । 'मतवाला“मष्डल में शिखमंगी की समस्या पर और জাননা में छोपे इस विपय के समाचारों या लेखों पर जब कभी बातचीत होती थी, यद्वि निराला वहाँ उपस्थित रहते, बड़े आवेश में वे अपने युक्तियुक्त तक एपस्थित करते । के देश में फैली हुई आथिक विषमता पर शब्दस्त्रसाधन करते समय उग्रतम साम्यवादी प्रतीत होते थे । यद्यपि हृष्टपुष्ट सिल्ुकौ के प्रति उनकी सहानुभूति भी उन्मृख् नहीं थी तथापि असमर्थ या अपाहिज লিলাহিতী কী ইদলীষ दशा के लिए वे शासन और समाज की ही तीत् आलोचना किया करते थे। लँगड़े, लूले, अंधे, कोढ़ी और निकम्मे वीन- হুন্নিঘট অং হী उनकी दृष्टि अट्कती थीं, फिर तो तरे अपनी वास्ति परिस्थिति को विलकुल भूल जाते थे । कलकत्ता सबश महानगर की संडकों की दोनों पटरियों पर के ढढ़ते फिरते थे कि वस्तृत: कौन वेचारा कैप्ती दूर्गति में है। उनका अधिकोश अवकाश-काल दीनों की दुनिया में ही জীললা শা 1 बह फुटपायों पर भिखारियों के सिवा बहुतेगे निराधित गरीब ओर कुली-कवाड़ी भी रात में पड़े रहते हैं । उनके लिए बीडी, 'मूढ़ी', भूजा चना, मू नफली आदि खरीदकर वितरण करनेवाला उस घनऊदेरों की महानगरी में तिराला के सिवा दूसरा कोई न देखा गया। হউন सेठ धनीधोरी रात में भी उत पटरियों से गुजरते थे, पर कहीं-कहीं कभी दो- चार पैंसे फैकनेवाले भले ही दीख जाये, सिराला की तरह उत दीलों से आत्मीयता स्थापित करनेत्राले डे ढे भी नहों मिल सकते थे । उस महानगर में नाना प्रकार के मनोरंजन के साधन हैं। क्या उन्हें उपलब्ध करने के लिए तिराला को पेसों की कमी थी ? किल्‍तु उतका मनोरंजन तो दीन-दूखियों की सूख पहुँचाने से ही होता था । कोई मित्र उन्हें सिनेमरा-थिएटर. भले ही ले जाय, उनके पसे तो भूखे-हूखे गरीबों की सेवा में ही लगने पर अपसी साथकता समझते थे ।




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