आधुनिक गद्य - संग्रह | Adhunik Gady Sangrah

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Adhunik Gady Sangrah  by जगदीश स्वरुप - Jagdish Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । १३ तय भाषा मे विद नहीं थी। उन्होंने अप्रेली-सापा के शब्दों का भी प्रयोग पिया है। मुद्ायरों तथा लोफोक्तियों के प्रयोग की प्रवुत्ति भी थो 1! प्रदापगारायण समिप--मिश्र जी कानपुर नियासी थे । यही इनका रूप टू था। आपने 'दाह्मण' नामक एक पत्रिका निकाली थी । इस सिर मे माप्यग में आप हिन्दी-गयय के स्वरूप को निसारने में अनवरत दर्थिंग गरते रा! जहाँ सारतेन्दु हुरिस्चन्द्र ते छिन्दी सापा फो अधिक मे छपिक शिक्षित-पर्ग दे लिए उपपुकत बनाने की चैप्टा की, यही मिशध जौ में भाषा पी प्रामीणता गग रंग देना चाहा । प्रतापनारायण मिश्र जी का दन्दी-गय स्वच्छरदता फो लिए हुए है! अत कापहे मय दी मापा उदार है और निन्म कोच एप से यपादसर अगयी, द्हरर सया भम्रेडी के शब्दों गग प्रयोग किया है । इनकी मापा में हास्य तथा प्यग्य का दहुत सुन्दर तपा निसस हुआ गप देते को मिलता है। उसको प्रभावपूर्ण दनाने के लिए इन्होंने मृहादगों सा सोवीशिपो का प्रयोग सपेलाइत समिव दिया ह। बाएं ढारपुवुस्द पुप्त--सासतेर्द को परम्परा फो शाप दटाने वा धन ऐ दाय या र्मुदुर्द युप्त दा विलेष स्पान है। यह मारेन्टर अचा दिपेदी-पुण थे जोड़ने वात बडी थे । निन्दी-गर को ध्यारहारिवता प्रदान उसने, सब ली ला शुगठिए पगो, प्रशटसगी दनाते से टपयपय दिशेध एदान है । शापये रपये सी भाप। शाहारणत हिर्दो-दई सिधिस है । छापने यशादगर श्री बे शप्टों शा सी प्योग दिया है । सुहायरों तथा पहायतों र एयोण दें हापदी धाषा रो र्विएयं तथा प्रभास एना दिया है 3 टन *बपर एए ऐसे है दि मासर्हेग्दू युग में हिर्दी एप शे रुप थे पद रित्द व ऐसा सप1 उस मापा बा गए रयाररणनमम्सस होते करा दा 1 हरी नपा बहापए दे. प्रयोग से टिग्दो्शट को लावपंप- दे श्दमा इनएया उ रहा दा व 'गद मे रए इरमबता पाने नो थी




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