मध्यकालीन हिन्दी और पंजाबी प्रेमाख्यान | Madhyakalin Hindi Aur Panjabi Premakhyan

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Madhyakalin Hindi Aur Panjabi Premakhyan by ओमप्रकाश शर्मा - Omprakash Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प स्तुति | ३ १८६० ९० | माना है? तो भाषा-विभाग, पटियाला द्वारा प्रकाशित पजायी साहित्य के इतिहाप मे १८८० ई० मध्यकाल की अन्तिम सीमा स्वीकार की गे হু ই ৭ सुरिन्दर शिहू नरूला एवं डॉ० गोपाल सिह दरदी १८५७ ई० के बाद आधुनिक काल का आरभ झानने हैँ” जबकि डॉ० सुरिन्दर सिह कोहली के अनुसार दीसबी शती इंसवी के आरम्भ से ही आधुनिक काल का वास्तविक प्रारम्भ हुआ हे।* वास्तव से विक्रमी छठी से चौदहवीं शती के मध्य का समय ससार की आधुनिक भाषाओं की उत्पत्ति एवं विकास का काल है। यूरोप में इसी काल मे लैटिन एवं ग्रीक से आधुनिक यूरोपीय भाषाओ की उत्पत्ति हुईं तो भारत में भी इसी काल में अपक्षश से आधुनिक भाषाओं का प्रस्फुटन एवं विकास हुआ। “तत्कालीन अपभ्रश वो हिन्दी कहना उतना ही उचित या अनुचित है जितना कि उसे मराणे, उद्निया, बंगला, जाराप्री, गोरखाली, पंजाबी अथवा गुजराती कहना ।'^ सम्वत्‌ एक हजार के आसपास उत्तरी भारत मे सिद्धो, नाथो ओर उनसे प्रभावित साक्रु-सन्तो का जनता पर ही रही साहित्य-क्षेत्र पर भी अपूर्व प्रभाव था। सिद्धों और नाथों के प्रभाव के कारण उस समय एक ऐसी काव्य-शब्दावली स्वीकृत हो चुकी थी जिससे सर्वसाधारण के श्रोत्र परिजित थे । साथ ही अनेक विदेशी आक्रमणों के कारण राजपुत (असिजीवी) सामन्तो के प्रति जन-सामान्य की अभ्यर्थना ओर श्रद्धा भी उस एकता का कारणं थी । “नती से वारहकीं शताब्दी के काल मे परिनिष्ठित अपभ्रंण राजपूत राजाओकी प्रतिष्ठा और प्रभाव के कारण, जिनके दरवार मेँ इसी शौरसेनी की परवर्ती था उसी पर जाधृत भाषाए व्यवहृत होती थी ओर जिसे चारणो ने समृदढ ओर णवित-रस्पन्न वनाया था, पश्चिम से पजाब और गुजरात से लेकर पूर्व में बगाल तक समूचे आये भारत में प्रचतित हो गई । संभवत: यह उस काल की राजभाषा मानी जाती थी। निश्चय ही एक युजलित एवं कविजनोचित भाषा होने के कारण उस समय सभी प्रकार की काव्यरचना के लिये यह उपयुक्त समझी जाती थी।”* उपयु का कथन से यह स्पप्ट है कि राजपूत दरबारों मे शौरसेनी के परवती विकसित रूप का राजभाषा एव काव्य-भापाके क्प मे व्यवहार होता था। यहु भाषात्मक एकता अः (लीयी सामन्तो, नाथो एव सिद्धो के प्रभाव स्वरूप थी । राजनीतिक दृष्टि से विश्व खजित होते हुए भी इस देश में उस समय अपूर्व, भाषात्मक एेव्य था। *« एन रंट्रोडकशन डु पंजाबी लिट्रेचर, पृ० ७ - पंजाबी साहितत द। इतिहास--मध्यकाल, লাদা-নিলাল, मुख प्रष्ठ २. पयावी साहित्त दा इतिहास, नरुला, पृ० २७४, दरदी, पृ० २०६ ४. पंजाबी साबित्त दा इतिहास. पृ० ४8८ ५. उर ल इन व्‌ हिस्टरी, एैच० जीण वेल्ज, प्रृ० ४१४' ६« हिन्दी काव्यवारा, राटुल सां्त्यायनः, भूमिका, प° ११, १२ भ ५. ओरिजिन ऐंड डरलपमेंट आब्‌ बंगाली लेंगुएज, एस० के० चटर्जी, पृ० ? १३ ९)




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