साहित्य - चिन्तन | Saahitya Chintan

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Saahitya Chintan by नरेश चन्द्र चतुर्वेदी - Naresh Chandra Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“~ ओर (ड साहित्य और इतिहास समाज क। जितना घनिष्ट संबन्ब साहित्य से है उतना ही इतिहाप से। समाज की प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया साहित्य प्र अपनी छाप दछोडे विना नही रहती और इतिहास में उसका वर्णन, विश्लेषण आवश्यक होता है । प्रत्येक युग का साहित्य अपने समाज का जीता जागता चित्र होता हे । एक ओर समाज की क्रियायें साहित्य को प्रभावित करती है तो दूसरी ओर समाज के नव निर्माण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोई भी विचार- धारा सब लोगों मे, एक साथ ही प्रवेश नहीं पा जाती । क्योंकि समाज की प्रत्येक इकाई मे यह्‌ शक्ति भौर सामथ्यं नही हआ करती कि वह्‌ भविष्य की आवश्यकता को समक्षे या उसकं लिये स्वय जागरूकः होकर पूरे समाज को उस ओर प्रेरित करे। परन्तु समाज की (काई के रूप में कुछ न कुछ ऐसे तत्वदर्शी व्यक्ति सदेव होते हे जिनकी दृष्टि काल पर रहा करती द और अविराम धूमते हुए कालचक्र की गति का अध्ययन-मनन करना जिनका प्रमुख कार्य होता है । राजनीति, अथशास्त्र, इतिहाव, धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, विज्ञान आदि के माध्यम से इस कालगति को ओर भी तीव्रता मिलती है। बद्यपि इन सभी माध्यमों से समाज का विकास होता है ओर परिस्थिति के अनुसार माध्यम विशेष को महत्व प्राप्त होता है; तथापि साहित्य का माध्यम एक ऐसा माध्यम है जो समाज को मानसिक दृष्टि से भावी भूमिका के लिए तंयार करता है । समाज की आवश्यकता और उसकी संपूर्ति के लिए वंज्ञानिक, दाशेनिक, राजनीतिज्ञ ओर अथंशास्त्री इत्यादि तो काम करते ८ हे, परन्तु साहित्यकार जिस बहुमुखी दृष्टि से समाज के लिए कार्य करता है वह सभी से अपनी विशिष्टता रखता है साहित्य ही एक ऐसा माध्यम है। जिसमें समाज की




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