आर्यसमाज के एक सौ प्रश्नों का उत्तर | Aryasamaj Ke Eksoi Prashno Ke Uttar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अजितकुमार जैन शास्त्री - Ajeetkumar Jain Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
परम्परा वां पर दी समाप्त दो जाती है, इसी प्रकार आत्मा
के साथ सन्तानङूप अनादिक्राल से लगे हुए कर्म भी समाप्त
हो जाते हैं । जिन बुरे भावों से कर्म बँधते हैं उन भावों को
आत्मा यदि दृटा दे तो फिर आगे कर्मबन्ध भी नहीं हो पाता ।
गन्धकी कुंड में ( जिन चूते हुए पानी के कुंड के नीचे
गन्धक आदि पद्/र्थ होतां है ली कारण कारण-अनादि से
उन कुंडो का पानी गर्म होता दै ) पानी अनादिकरात्न से गर्म '
दांता है, किन्तु यदि उली जलको वहां से निकाल कर गह्ढा
आदि नदी में डाल्न दिया जावे तों उसकी बेखी अतादि का-
लीन गमे दालन खत्म हो जाती है। दसी प्रकार अनादिकालीन
कमे भी आत्मा से अलग दो जाते है. ।
कमे श्रात्माके साथ संयोग सम्बन्ध से रहते है; इखो
कारण वे च्ूटते भी रहते हैँ । नियमाचुसखार किसी समय वे
बिलकुल सी आत्मा से दुर दो सक्ते है ।
अत्मा की वैभाविकदशामे क्मौ का बन्धन होना र्ता
है । जिस समय वह विभावदशा मिरकर स्वाभाविकद्शा प्रगट
दोजाती है, कमंबन्च्र भी बन्द दो जाता है । जैसे कि श्रि
आंदि की उपाधिसे पानो गर्म होता है ओर ज्व वह उपाधि
ঘতত আন রী पानी अपनी असल द्वाल्त में आकर ठंडा दो
जाता है।
प्रश्त ३--पर्याय बदलता द्रव्य का स्वासाविक धर्म है
या वैसाधिक । यदि स्वाभाविक है तो मुक्त जीवों का पर्याय
User Reviews
No Reviews | Add Yours...