भारत की अन्तरात्मा | Bharat Ki Antaratma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दू-धर्म की श्रन्तरात्मा १६
है । विचार एव तकं ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं गीता
युविनपुणं श्रान्तरिक सूभ पर ज़ोर देतो हँ--ज्ञानम् विज्ञान सहितप्।
बोदिक सहारे के विना सम्भव हं हमारी आन्तरिक सूक व्यक्तिगत
भावुकता ही रह जाय) इसं रक्षक वाक्य मं गीताक्ारं का यह्
सक्त पाया जाता हूँ कि सत्य की प्रत्यक्षानुभूति में सावेभौमिकता
रहती हूँ। यह प्रत्यक्षानुमूति हमें विनम्नता की भावना से प्राप्त हो
सकत) ह । यदि हम बौद्धिक श्रहकार का परित्याग कर दें तथा
जिज्ञानु भाव का अपना लें तो स्वर्गीय वायु के कोके हम तक पहुँच
सकते है। योगाभ्यास मन को इस योग्य बनाता है कि वह श्राभ्यन्तरिक
निस्तब्धता के गम्भीर घोष को सुन सके। तब हम अ्रपती श्रात्मा से,
विद्वात्मा से, तादात्म्य का प्रनुभव कर सकते है।
ईशवर-्साक्षात्कार के लिए ज्ञान-मार्ग बहुत ही मन्दं गति एवं
कष्टपूण हं 1 “इस समस्त विव के रचयिता एव पिता को प्राप्त
करना बहुत कठिन हैँ तथा उसे पाकर सबको बताना तो असम्भव
ही है।* हमारी आयू इतनी छोटी होती है एवं अ्न्वेषण की गति
इतनी घीमी! हम खाली बेठकर प्रतीक्षा नही कर सकते। हमें
जानने की जल्दो है। हम किसी ऐसे धर्म को स्वीकार कर लेना
चाहते हे जो हमारे जीवन का सहारा बन सके, जो सन्देह-भावना से
हमारी रक्षा कर सके एवं व्यावहारिक जीवन में हमारा सहायक द्वो
सके। ईश्वर साक्षात्कार के लिए लोगो की अधीरता उन्त नीम-
हकीमो को श्रपना जाल विद्धाने का मौका देती हं जौ अपने
श्रनुय।यियो को श्रल्प काल में ही मोक्ष प्राप्त करा देते का वादा किया
* प्लेटो--टिमियस २६
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