समस्या को देखना सीखें | Samsyaon Ko Dekhna Seekhein

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Samsyaon Ko Dekhna Seekhein by आचार्य महाप्रज्ञ - Acharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्शन और बुद्धिवाद ८ स्व-दर्शन : पर-दर्शन कुच लोगो की एेसी मान्यता है कि पहले दार्शनिक ज्ञान विकसित हुआ, फिर धर्म की उत्पत्ति हुई । किन्तु मै ऐसा नही मानता । मै धर्म को दर्शन का साधन मानता हू | धर्म से दर्शन की उत्पत्ति होती है किन्तु दर्शन से धर्म की उत्पत्ति नही होती | दर्शन हमारी प्रत्यक्ष चेतना का विकास है और धर्म उसका साधन | जब तक हमारा दर्शन अपूर्ण होता है तब तक हमारे लिए दर्शन और धर्म भिन्‍न होते है | जब हम पूर्ण द्रष्ट बन जाते है तब हमारा धर्म हमारे दर्शन मे विलीन हो जाता है; वहा साध्य और साधन का भेद समाप्त हो जाता > । साधना-काल मे जो साधन होता है, वह सिद्धि-काल मे स्वभाव बन जाता है | दर्शन की साधना करते समय धर्म हमारा साधन होता है और उसकी सिद्धि होने पर धर्म हमारा स्वभाव बन जाता है--हमसे अभिन्‍न हो जाता है | जिस दर्शन की मैने चर्चा की है, उसे स्व-दर्शन या आत्म-दर्शन कहा जा सकता है । इसके अतिरिक्त जैन, बौद्ध और वैदिक आदि जितने दर्शन है, वे सब पर-दर्शन है अर्थात्‌ बुद्धि द्वारा गृहीत दर्शन हैं | जो दर्शन धर्म द्वारा प्राप्त होता है वह स्व-दर्शन होता है और जो बुद्धि द्वारा प्राप्त होता है, वह पर-दर्शन होता है । स्व-दर्शन से आत्मा प्रकाशित होती है ओर पर- दर्शन से परम्परा का विकास होता है । आत्मा का स्पर्श करती हुई हमारी जो आस्था है, ज्ञान ओर तन्मयता है, वही धर्म है | इसी धर्म की आराधना से दर्शन का उदय होता है । জী लोग इस आत्म-दर्शन का स्पर्श नही करते उनमे बौद्धिक विकास प्रचुर हो सकता है पर दर्शन का उदय नहीं होता । बुद्धिवाद की समस्या दर्शन प्रत्यक्ष होता है, आभास से मुक्त होता है | बुद्धि मे आभास होता है, सशय भी होता है ओर विपर्यय भी होता है । बुद्धि हमारा अत्यन्त समाधायक साधन नही है, वह कामचलाऊ अस्त्र है। उसके निष्कर्ष अनेक द्वारौ सै निकलते है । न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धात की स्थापना की | आइन्स्टीन ने सापेक्षवाद की स्थापना कर उसकी व्याख्या में परिवर्तन ला दिया | फिर भी आइन्स्टीन के गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी नियमो का प्रयोग जब नक्षत्रीय समस्याओ के समाधान के लिए किया जाता है, तव ठीक वही परिणाम निकलते है, जो न्यूटन के नियमो के प्रयोग से निकलते है । भू-भ्रमण के बारे मे अनेक मत है । वुद्धि के द्वारा उन्हे कोई निश्चित रूप नही दिया जा सका । बुद्धिवाद अपने युग मे नवा रूप लाता हे ओर चमत्कार उत्णन्न करता है । चिरकालं के वाद वह दुद्े आदमी की तरह जीर्ण हो जाता ह । कोपरनिकस का भू- भाग का सिद्धात एक दिन व्हुमूल्य धा किन्तु सपक्षवाद की स्थापना के दाद अत्पमूत्य हो गया | लिओपोल्ड इन्फेल्ड के शब्दो मे- 'कोप्रनिकस और टॉलमी के मिद्धात के विषय




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