श्री जवाहर स्मारक प्रथम पुष्प खंड 1 | Shree Jawahar Smark Prtam Pushp Khand 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीयुत पूर्णचन्द्र - Shriyut Purnachandra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वास्तविक शांति ] [ &
जीवो को अपनी आत्मा के समान मानना चाहिए | ज्ञानीजन
ही यह विचार कर सऊता है कि कोई प्राणी दुख से पीडित
न हो । अज्ञानी छोग ऐसा विचार नही कर सकते ।
महाराजा विश्वसेन अच्च-जल त्याग का अ्रभिगह ग्रहण
कर के परमात्मा के ध्यान मे तल्लीन होकर बेढठे हुए थे ।
उधर महारानी अचिरा भोजन करने के लिए पतिदेव की
प्रतीक्षा कर रही थी । भारतीय सम्यता के श्रनुसार पति-
मरता स्त्री पति के भोजन करने के पूर्व भोजन नही करती
है । गुजराती भाषा में कहावत्त है कि 'माठी पटली बैयर
खाय, तेनो जमारौ एते जाय' । श्राज भी भले धरौ की स्तिया
पति के भोजन करने के पहले भोजन नही करती किन्तु
पति के भोजन कर चुकने पर भोजन करती हैं ।
भोजन करने का समय हो चुका था और भोजन भी
तैयार था फिर भी महाराजा के न पधारने से महारानी
अचिरा ने दासी को बुलाकर उससे कहा कि तू जाकर महा-
राजा से अरजे कर कि भोजन तयार है। राजा को भोजन
निश्चित समय पर ही करना चाहिए ताकि शरीररक्षा हौ
और शरीररक्षा होने से प्रजा की भी रक्षा हो सके । दासी
महाराजा के पास गई किन्तु उन्हे ध्यान मे तत्लीन देखकर
बोलने की हिम्मत न कर सकी ) साधारण लोगों को तेज-
स्त्री महापुर॒षो वी ओर देखने की हिम्मत नही होती है । घैज-
स्वियो के मुख से एक प्रभामण्डल निकलता है जिसके कारण
साधारण आदमी उनकी ओर नही देख सकता !
दासी महाराजा विश्वसेन का ध्यान भग न कर सकी ।
वह दुर से ही धोरे-धीरे कहने छगी कि भोजन तैयार है,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...