श्री जवाहर स्मारक प्रथम पुष्प खंड 1 | Shree Jawahar Smark Prtam Pushp Khand 1

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Shree Jawahar Smark Prtam Pushp by पूर्णचन्द्र जैन - Purnchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वास्तविक शांति ] [ & जीवो को अपनी आत्मा के समान मानना चाहिए | ज्ञानीजन ही यह विचार कर सऊता है कि कोई प्राणी दुख से पीडित न हो । अज्ञानी छोग ऐसा विचार नही कर सकते । महाराजा विश्वसेन अच्च-जल त्याग का अ्रभिगह ग्रहण कर के परमात्मा के ध्यान मे तल्‍लीन होकर बेढठे हुए थे । उधर महारानी अचिरा भोजन करने के लिए पतिदेव की प्रतीक्षा कर रही थी । भारतीय सम्यता के श्रनुसार पति- मरता स्त्री पति के भोजन करने के पूर्व भोजन नही करती है । गुजराती भाषा में कहावत्त है कि 'माठी पटली बैयर खाय, तेनो जमारौ एते जाय' । श्राज भी भले धरौ की स्तिया पति के भोजन करने के पहले भोजन नही करती किन्तु पति के भोजन कर चुकने पर भोजन करती हैं । भोजन करने का समय हो चुका था और भोजन भी तैयार था फिर भी महाराजा के न पधारने से महारानी अचिरा ने दासी को बुलाकर उससे कहा कि तू जाकर महा- राजा से अरजे कर कि भोजन तयार है। राजा को भोजन निश्चित समय पर ही करना चाहिए ताकि शरीररक्षा हौ और शरीररक्षा होने से प्रजा की भी रक्षा हो सके । दासी महाराजा के पास गई किन्तु उन्हे ध्यान मे तत्लीन देखकर बोलने की हिम्मत न कर सकी ) साधारण लोगों को तेज- स्त्री महापुर॒षो वी ओर देखने की हिम्मत नही होती है । घैज- स्वियो के मुख से एक प्रभामण्डल निकलता है जिसके कारण साधारण आदमी उनकी ओर नही देख सकता ! दासी महाराजा विश्वसेन का ध्यान भग न कर सकी । वह दुर से ही धोरे-धीरे कहने छगी कि भोजन तैयार है,




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