भारतेन्दु के निबंध | Bharatendu Ke Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९३ )
धुरावृत्त-संग्रह” मैं भी प्रशस्ति, पुराने शिलालेख आदि की ऐतिहासिक सामग्री का'
विवेचन किया गया है। इसी मैं 'अकचर ओर औरंगजेब” नामक लेख भी है जो
बड़ा मनोरंजक है। भारतेंदु की इतिहास-विषयक रुचि के निद्शन मैं इन पुस्तकों
का नाम प्रायः लिया जाता है | द
वास्तव मैं ये इतिहास-म्रथ न होकर इतिहास के हाँचे हैं जिनमैं उसकी स्थूल'
रूपरेखा मात्र दी गई है। अधिकांश मैं केवल वंशपरंपरा, राज्यारोहण तथा
देहावसान का समयचक्र दिया है| कुछ मैं राजाओं का इत्तांत भी है, जिसका
आधार परंपरा ओर जनश्रुति है और जिसका उल्लेख बिना किसी शोध या
छानब्रीन के कर दिया गया है। लेखक मैं असाधारण तथा श्रश्चर्यजनके इतत
के उल्लेख की रुचि विशेष रूप से लक्षित होती है । क्
ये ऐतिहासिक निबंध न तो अत्यंत विस्तृत हैं ओर न ये इतिहास-लेखन के
उत्कृष्ठटम उदाहरण ही कहे जा सकते हैं। फिर भी इनका महत्व है, ओर यह
महत्त्व उनकी पूर्णता मैं न होकर नवीन प्रयास और नई परपरा के परव्तन म
है। ये नित्रंध देश के अतीत के प्रति जन्च और उत्सुकता जगाने के लिये लिखे
गए थे जिससे देशवासी अपनी प्राचीन गौरव-गाथा का स्मरण कर अपनी वर्तमान
दयनीय दशा पर आँसू बहाएँ और अपनी उन्नति का उपाय सोचें | शिक्ञात्मक .
महत्व के साथ इनका महत्त्व इस बात मैं भी है कि इनसे भारतेंदु की ऐतिहासिक
भावना का पता लगता है, जो कि उन्नीसवीं शताब्दी की प्रचलित ओर मान्य
ऐतिहासिक भावना के मेल में है । ॥
उन्नीसवीं शताब्दी की ऐतिहासिक भावना आज की भांति वर्गप्रधान न होकर
व्यक्तिप्रधान थी । किसी राजा के जन्म, राजतिलक, उसके युद्ध, जय-पराजय तथा
उसके असाधारण कृत्यों और उससे संबंधित घटनाओं के कालक्रमानुसार वन मैं
ही इतिहास की इतिश्री समझी जाती थी | इसी से उस युग के इतिहास-लेखकों:
की तरह मारतेंदुः ने मी राजाओं की वंशावली दी है, उनका राज्यकाल बताया है
और कतिपय प्रमुख घटनाओं तक अपने को सीमित रखा है। इन राजनीतिक:
घटनाओं का सामाजिक अ्रवस्था और युग की अ्रन्य प्रत्नत्तियों से कया संबंध था,
इसकी ओर ল उस समय के इतिहासकारों का ध्यान था और न भारतेंदु का ही।
दूसरे शब्दों में, ऐतिहासिक भावना की जो डुबलता या कमी हम दिखाई पड़ती
है वह मारतेंदु की व्यक्तिगत डुर्बलता नहीं है, प्रयुतं उ शताब्दी की सीमित
परिधि ॐ परिणामखरूप है जिसका श्रतिक्रमण लेखक न कर सका । ह
भारतेंदु ने इतिहास को हिंदू की दृष्टि से भी देखा ओर आऔँका है, मुसलमानी
राज्य के प्रति माधिक श्रर कट व्यंग करने मै कपर नहीं रखी । निम्नलिखित
कथन इसका संकेत दे रहा है--
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