अधूरी मूरत | Adhoori Moorat

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Adhoori Moorat by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वृद्ध के होंठ कांप उठे | फिर इन्कछात्र जिन्दाबाद” की अबाज थहर उठी | चुनाव का जमाना था। कांग्रेस,छीग, कम्यु লিং और न जाने कौन-कॉन सी -पराटियां अपना-अपना जोर आज़मा रही थीं,क्यीकि गोरी सरकार ने कह्दा है कि वह हिन्दु- स्तान की आज्ञाद वर देना चाहती है ! वृद्ध ने सुना | हसन कह उठा--इमामप्राक, फिर हिन्दू-मुसछमान आपक्त में क्यों टड़ते हैं ? अब क्या अगरेज़ों का राज नहीं है” 'है क्यों नहीं, लेकिन छोग तो अपनी-अपनी ख़ुदगार्जियों में उल्झे हुए हैं | उन्हें क्या पड़ी कि गरीबों की या हालत है!” हसन कुछ ममझ नहीं सका । उसने फिर कह्ठा--इमाम- पाक, बादशाह ने तो कहा था कि जब तक गाजियों में इमान की यूं रहेगी. ..ै! 'शाबाश! वृद्ध ने कहा--छिकिन कहां है श्मान की बू ! में चाहता हूं कि तुम में से हरएक में इमान की बूं हो, तुम में से हर एक गाज़ी बने | उस दिन भी बादशाह के तख्त के छिये हिन्दुओं ने तत्यब।र उठाई थी। आज से पत्नीस व पहले एक बार फिर भाई-साई मिल कर उठे थे, तब खूनी के एव डगमगाने लगे थे | छेकिन बंदकिस्मती से किर फूट पड़ गए |! वृद्ध का स्वर तौरा हो गया | उसने कहा- श्वचो,रसेल-दटाही का पैगाम सुन कर गुरझाम आजाद होते थ । आज आजादी को करों से कुचछ कर हम मुसत्मान बनने का दावा नहीं कर सकते ।' ( ९




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