भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास | Bhartiya Darshanshastra Ka Itihas

Bhartiya Darshanshastra Ka Itihas by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ७9 की कामना भी होती है । कठिन से कठिन और ऊँचे से ऊँचे विषयों पर दशनशास्त्र में विचार होता है इस लिए दशनशास्त्र के विद्यार्थी की तुच्छ चस्ठुद्रों श्र प्रश्नों में रुचि होनी कठिन है | भोतिक जगत जीवन की रंगभूमि है । भोतिक शरीर और श्वात्मा कही सा और जोनें वाली वस्तु में गंभीर संबंध मालूम होता है। वभिन्न विज्ञान शारीरिक दशात्रों और सानसिक दशाश्ं में भी घनिष्ठ संबंध है । इस संबंध को ठीक-ठीक समझने के लिए भौतिक-तत्वों तथा शरीर की बनावट का द्रध्ययन भी आवश्यक है । श्राजकल का कोई सी दाशनिक भौतिक-विज्ञान और शरीर-विज्ञान के मूल सिद्धांतों की उपेक्षा नहीं कर सकता । प्राचीन-काल में यह शास्त्र इतने उन्नत न थे इस-लिए. प्राचीन दार्शनिक भौतिक श्र के विषय में या तो युक्तिपूण कल्पना से काम लेते थे या उन के यति उदासीन रहत॑ थे | परंतु द्ाजकल के दार्शनिक का काम इतना सरल नहीं है। जीवन के विपत्र में जहाँ से भी कुछ प्रकाश मिल जाय उसे वहां से ले लेना चाहिए । . समाजशास्त्र राजनोति अथशास्र इतिहास आदि भी सानव-जीवन का अध्ययन करते हैं। इन विषयों का दशन से घनिष्ठ संबंध है। इसी प्रकार मनोविज्ञान भी दाशनिक के लिए. बड़े काम की चीज़ है। यदि हम मानव-जीवन को ठीक-ठीक समभना चाहते हैं तो हमें उस का विभिन्न परिस्थितियों में श्रध्ययन करना पड़ेगा । मानव-जीवन को सामाजिक और भौतिक दो प्रकार के वातावरण में रहना पड़ता है उसे राजनीतिक ऐति- हासिक और श्रर्थिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है । मनोविज्ञान के नियम व्यक्ति और समाज के व्यवहारों पर शासन करते हैं । इस प्रकार दाशंनिक को थोड़ा-बहुत सभी का ज्ञान श्रावश्यक है । प्रश्न यह हे कि इतने शास्त्रों के रहते हुए दर्शनशास्त्र की अलग क्या श्ावश्यकता है ? इन विज्ञानों आर शास्त्रों से अलग दशनशास्त्र के श्रध्ययन का विषय भी क्या हो सकता है




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