सातवे दशक की हिंदी कहानियाँ | Satve Dashak Ki Hindi Kahaniyan

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Book Image : सातवे दशक की हिंदी कहानियाँ - Satve Dashak Ki Hindi Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का वेसा आग्रह, उनके 'यहाँ नही था, प्रगतिशील दृष्टिकोण भी ( अपना पराया और 'पाजेब' जैसी दो-चार कहानियो को छोडकर ) उनके यहाँ नहीं था । लेकिन मनोवेज्ञानिकता---विजेपकर सेक्सगत स्थितियों को लेकर---उत्तके येहाँ थी । और यह उसी नयी यथाथवादी धारा के प्रभाव स्वरूप था 1 यणपांल के यहाँ काफी प्रगतिशोलूता थी, यथार्थता भी थी, लेकिन उनकी कहानियों का एक सेट फार्मूला था। उ साक्संवादी विचारधारा से उद्भूत एक यथां समस्या को लेते भौर उस पर कल्पना से पात्र फिट कर देते भौर अपनो वातं खासे तीखेयन से कह देते। मेरे यहाँ दोनो का समावेश था --मविसवादी विचारघारा भी ओर मनो- वैज्ञानिकता भी । मैं जिंदगी से घटनाएँ और यथार्थ पात्र उठाता और उनके चित्रण से समस्याओ और सूत्रो का संकेत करता । आज की भाषा में कहूँ तो, १९६३६ के बाद मैंने बिना 'भोगे' अथवा 'झेले'---दूसरे शब्दों मे बिना फर्स्ट हैण्ड अनुभव प्राप्त किये---कम ही कोई कहानी लिखी ।--यथार्थता, मनोवैज्ञानिकता, सीधी सरल भाषा, प्रगतिशीरूता, लेकिन उसके बावजूद सत्य के प्रति एक जबरदस्त आग्रह--थथार्थ स्थितियों की ऐसी आलोचनो कि पाठक चाहे तो यथार्थ स्थिति को जानकर उसका निराकरण करे, चाहे आदर्श बनाये या तोड---अपनी बात कहने को मैंने यही सिद्धांत वताये और बड़े ही सूक्ष्म व्यंग्य को साधा और मॉमा । और इन तीनो कोणों की समग्रता से ही उस नये युग का पूरा मूल्यांकन किया जा सकता है। कोई वीच का कथाकार जैनेन्द्र, अन्नेय अथवा यदह्यपाल मे से किसी एक की कहानी को सामने रखकर अपने तयेपत का सबृत दे सकता है, लेकिन चारों को सामने रखकर शायद ही कोई एेसा कर सके । कमलेश्वर ने नयो धारा' के समकारीन-कहानी-विशेषांक' मे शय्चन्र के 'दीदी- वाद' तथा जेनेद्ध के 'भाभीवाद' पर व्यंग्य किया है। मैं उन्हें पहले यह बताना चाहता हूँ कि उनके दोस्त श्री राजेनद्र यादव आज भी दादा ओर दीदीवाद से बेत- रह आक्रान्त है--उत्तके (उखडे हुए लोग,' হান জীন मात' और “अनदेखे अनजान पुर में वह शर्चद्धीय दीदी-दादावाद कही खुले और कही छ्य रूप मे मिरु जायगा 1 फिर, मैं उन्हे यह बताना चाहता हूँ कि जेनेद्ग की 'राजीव और उनकी भाभी! ( जिससे कि भाभीवाद की धारा चली ) अपने में क्रान्तिकारी कहानी थी, जो उस जमाने के दमित सेक्स को वाणी देती थी । और बीच के कथाकारो ने शोर चाहे जितना मचाया हो, एक भी ऐसी कहानी नहीं लिखी, जो कोई नयी धारा चला दे, अथवा कहानी-साहित्य को नया मोड दे दे। उन क्रान्तिकारी कदमो का, जो उस युग में उठाये गये, बीच के तमाम कथाकारो पर कितना प्रभाव है, इसे वे अपनी कहानियो का निरपेक्ष विश्लेषण करके जान सकते है। बीच के ঙ




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