शासन समुद्र - भाग 5 | Shasan-Samudra Part-5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंगल-स्तुति लय-पल पल वीती जाए--- ““ मगलमय मंगल-कृति में, सौलह सतियो को याद करूं २। गरुण सुमन चयन कर स्मृति मे, नस-नस में रस आल्हाद भरूं २ ।धुव॥ हे ब्राह्मी ओौर सुंदरी दोनों, कन्या अकन-कुमारी । हे शिक्षाथिनी वनी फिर खोली, संयम रस की क्यारी ॥मं.१॥ हे दमयंती ने विपदा-क्षण में, पति का साथ किया है। है धैर्य और साहस का सचमुच, परिचय बड़ा दिया है॥२॥ है शोल-सलोनी कौशल्या कौ, निर्मल शील-क्रिया है। है पुरुषोत्तम गुण-धाम राम को, जिसने जन्म दिया है ॥३॥ है जनक-सुता सीता का जग में, शील-प्रभाव अनूठा । हे अग्नि हो गई शीतल पानी, सत्तव-देवता तूठा॥४॥ है जननी पांच पांडवों की वह, कृती सती सयानी। हे पावन पतिव्रता की प्रतिमा, स्मृति कौ वनी निशानी ॥५॥ है द्र्‌.पद-घुता के सत्थ शील की, महिमा अति फलाई। हे चीर एक सौ आठ देखकर, परिषद्‌ विस्मय पाई।।६॥ है राजीमती सती ने प्रियतम, पति का पथ अपनाया हे वोध-दान रथनेमि संत को, देकर ऊध्वं उठाया ।७॥ है सती पुष्पचूला ने सच्चा, श्रातृ-भाव दिखलाया। है स्वच्छ हृदय से सबको अच्छा, मैत्रि-मंत्र सिखलाया ॥८॥




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