अकबर की शायरी | Akbar Ki Shayari

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Akbar Ki Shayari by जगदीश - Jagdeesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकबर की शायरी दिल मेरा जिससे बदलता कोई ऐसा न मिला । बुत क बन्दे मिते अह्लाद का बन्दा न मिला) वर्मे यार्रोसे फिरी वादे वदारीर मायूस । एक सर भी उसे शमादय सौदा न मिला॥ गुल के ख़्वाहाँ * तो नजर आये बहुत इत्र फ़रोश* तालिवे« रम्ज्‌* मये बुलबुल शैदा*° न मिला ॥ वाह. क्या राह दिखाई है हमें मुशिद११ ने। कर दिया काबे को गुम ओर कलीसा** न मिला ॥ रंग चेहरे का तो कालिज ने भी रखा कायस । रंग वातिन)+ में मगर बाप से वेटा न मिला ॥ सय्यद्‌ उद्न जो गजुट*४ ले के तो लाखों आये । शेख क़ोरान दिखाते फिरे पैसा न मिला॥ { दोशियासे मे तो एक एक से सवा हैं “अकबर” । । मुझको दीवानों में लेकिन कोई तुम सा न मिला ॥ (१) मृति (२ ) मजलिस ( ३ ) वहार कौ इवा ( ४ ) नाउम्मीद ( ५ ) पागलपन (९ ) चाहने वाले (७ ) वेचनेवाल्ला ( ८ ) चाहने वाला (&) भेद (१०) भ्ाशिक्र (११) गु (१२) भिज ( १३ ) छिपा हुआ ( १४ ) गवर्नसेन्ट का अखबार ।




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