लाजपत राय जीवन तथा कार्य | Lajpat Rai Jeevan Tatha Karya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका एस साताजी पे. साथ बम्यई यात्रा की एवं याद उनवे साथ मेरे सम्पक वा अनूठा अनुभव था । उसदी भी सक्षेप मे यद्दां चर्चा कर देनी चाहिए । जैसे ही हम सावरकर के घर से निकलकर अपने मेज़वान बे घर जाने मे लिए बार मे बैठे लालाजी पुरी तरह अपने विचारा में डूबे हुए दिखाई पढे और शीघ्र ही उन्होंने अपने भापसे बातें करनी शुरू पर दी । वह मेरे साय बातें नहीं कर रहे थे और ने ही हमारा कोई और साथी वहां था । ऐसा दियाई पड़ता था वि उहें इस बात का भी ज्ञान नदी कि बोई और उनके साथ भी है और उन्होंने वई ऐसी वातें भी की बारे मे मेने उनसे पहले कभी सुना भी नहीं था । यह स्वगत बधथन शुछ इस प्रकार था -- हमने ऐसा करके देखा यह भी किया बह भी किया... कोई कोर-वसर बाकी नहीं छोड़ी अपनी भोर से पूरा यल किया... फिर भी कसी भी तरह सफलता नहीं मिली ? इन वाता मे गहरी सिंराशा ही मुख्य थी ऐसी निराशा जिसकी झलव मैने उनकी बातो मे पहले कभी भी नहीं देखी थी । इस स्वगत वयन में नेपाल की घटनाएं भी शामिल थीं गौर अय यातें भी जिनके साथ मैंने कभी उनका सवबध होने की. कल्पना भी नहीं की थी । विमायपक सावरवर के साथ मेंट ने उनमे ऐसी मन स्थिति पैदा कर दी थी जो मेने उनमे पहले बभी नही देखी थी और न ही वाद में कभी देखने मे आई । में चुपचाप बैठा रहा । अपने आपसे की गई उनवी यातों के बारे मे बाद में में कभी जानने का साहम नहीं कर पाया । दिवास्वप्त मे अपने आपसे की गई इन बातो से हमे एक ऐसी धलक दिखाई दे गई जो चाहे अपूण थी परन्तु ऐसा पाश्वचिन्र दिखा गई जो अपरिचित था और जिससे यह संकेत सिलता था कि इस बात की सभावना है जो कुछ हमें दिखाई दे रहा है उससे बहुत अधिक छुपा हुआ है । बाद मे जब मेंने उनकी आत्मकथा के कुछ खड मरणोपरान्त प्रकाशन के उद्देश्य से पढे तो उनमे कुछ सक्षिप्त तथा महत्वपूण भश दप्टिगत हुए -- कलकत्ता मे निवेदिता के साथ उनवी बातचीत या गायक्वाश के साथ उस समय हुआ वार्तालाप जब सभी अतिथि जा चुके थे और उस राजकुमार ने श्यामजी और लालाजी को जाम बूझकर रोक लिया था या. उनके पत्नां में मैंने उनके स्पेनिश भाषा की कक्षा में 2-136 हा ०




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