चर्चा सागर समीक्षा | Charchasagar Samiksha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Charchasagar Samiksha by परमेष्टिदासजी न्यायतीर्थ - Parmeshtidasji Nyayteerth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about परमेष्टिदासजी न्यायतीर्थ - Parmeshtidasji Nyayteerth

Add Infomation AboutParmeshtidasji Nyayteerth

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ हे ] जैन सिद्धान्त प्रकाशिती संस्था कलकत्ता से शास्प्राकार ५३८ पृष्ठों मं प्रकाशित हुआ है 1 इख ग्रन्थ की रना का मुरु उदेश्य शुद्धाज्नाय तेरह पंथ को कोसने का या उसे नोचा दिखाने का লাভুম ्ोता दै । कारण, कि उस तेरह पंथ की उत्पत्ति का पृष्ठ ४६० पर बडे ही भटे टङ्कः से वर्णन किया गया है और तेरह पँथ की मान्यताओं की मज़ाक उड़ाई गई है । इस लिषयको हम आगे स्पष्ट वतावेंगे, जिससे पांडे जी के पेट का पाप स्पष्ट मालूम हो जायगा 1 पडि चस्पाखाल कौ पेसी अनेक द्वेषपूणं बातों का खुलासा हम आगे करेंगे। इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ भें आगम ओर सदाचार फे विरुद्ध भी अनेक कथन भरे पड़े हैं। चर्चा सागर का रचना काल ओर उसकी प्रमाणिकता | पत्रों द्वारा यह बात तो प्रगट ही दो चुकी है कि चर्चा सागर के छपाने ओर उसके प्रचार करने में क्षुलक कहे जाने वाले शानसागर ( पं० नंद्नलाल ) जो ने पूर्णभाग लियाहे और श्रीमान्‌ सेखगंभीरमलली पाण्डया कलक्त्ताको धोखा देकर उनसे करीव ८५०} प्रकाशनाथं सद्यायताके लिये निकलवाये थे । दस का स्पष्ट विबरण आगे प्रगर किये गये सेट जी के पत्रसे माद्धूम हो जायगा । यद भी शात हुआ है कि शानसागरजी महाराज ने अपने सगे भाई पं० छाहाराम जी को ३००) दि्लवाक्र चचोसागर को ठूंढारी भाषा से दिन्दी भाषा में करवाया हैं। सूल में तो ओर भी अनेक अनहोनी एवं आगमविरुद्ध चचौयें भरो थीं, जिसे प्रकाशक जी ने काट छांट कर साफ फेर डालो हैं, यह बात भी सेठ गंभीरमल जी के पत्र से माल्म हो जा- येगी। तीखरे सगे भाई पं० मक्खनलाल जी चर्चोसागर के पूर्ण समर्थक हैं । इसी लिये आपने चर्चसागर अन्थ पर शासनीय




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now