आधुनिक साहित्य - खंड | Adhunik Sahitya Khand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.88 MB
कुल पष्ठ :
578
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका जगदीश पीयूष डा अवधी के विकासक्रम को अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से हम चार भागों में विभक््त कर सकते हैं 1. प्रथम उत्थान सन् 1865 से 1900 ई. तक 2. द्वितीय उत्थान सन् 1900 से 19535 ई. तक 5. तृतीय उत्थान सन् 1985 से 1960 ई. तक 4. चतुर्थ उत्थान सन् 1960 से अद्यावधि डॉ. सर्यप्रसाद दीक्षित ने अवधी के आधुनिककाल की प्रवृत्तियों को दो खण्डों में विभाजित किया है-स्वातंत्रयपूव तथा स्वातन्तयोत्तर । स्वातंत्रयपूर्व यह साहित्य उपेक्षित था । अवध व उसके आस-पास के क्ेत्रों में अवधी साहित्य के विकास की लहर 19वीं शती से प्रारम्भ हुई खड़ी बोली हिन्दी से लगभग 50 वर्ष बाद । 1. प्रथम उत्वान आधुनिक अवधी साहित्य के क्षेत्र में प्रथम उत्थान का श्रीगणेश भारतेन्दु हरिश्चन्द्र तथा उनके मण्डल की लेखनी से मानना चाहिए। भारतेन्दु जी ने अवधी में कुछ लिखने का सूत्रपात किया परन्तु अवधी की प्राण-प्रतिष्ठा करने का श्रेय पं. प्रतापनारायण मिश्र को ही जाता है क्योंकि परवर्ती कवियों पर मिश्र जी का ही अधिक प्रभाव परिलक्षित होता है। आजादी की लड़ाई के बीच अवधी कविता को विशेष सम्बल प्रदान करने वालों में हरपाल सिंह का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने अधधी में कविता करने के लिए कवियों तथा लेखकों का आहवान किया था। आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी तक उनसे काफी प्रभावित हुए थे । दिवेदी जी ने फल्लू अल्हैत नाम से काफी कुछ लिखा था। हिन्दी कविता में जिस समय छायावाद प्रगतिवाद के गीत गाये जा रहे थे उस सन्धिकाल में जनचेतना को परस्पर समन्वित करके अवधी के सुविख्यात कवि बलभद्रप्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी ने अवधी की बागडोर संभाली थी । उनके साथ ही अवधी भाषा का जन-जन में सम्पूर्ण देश में प्रचार-प्रसार कर वृहत्तर कार्य वंशीधर शुक्ल ने किया। अवधी के प्रथम उत्थान काल में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रतापनारायण मिश्र बालकृष्ण भटूट राधाचरण गोस्वामी शिवनाथ शर्मा उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन हरिपाल सिंह महावीर प्रसाद दिवेदी ब्रजभूषण त्रिपाठी ललनेश गणेशप्रसाद गणाधिप गदाशर सिंह गणेशप्रसाद गनाधर शुक्ल मनोहरलाल मिश्र आदि का विशेष योगदान है। भारतेन्दु जी एक प्रतिभाशाली कवि होने के साथ साथ एक महान युगद्रष्टा भी थे। उन्होंने अपनी काव्य-भाषा को मुख्य रूप से ब्रजभाषा रखते हुए भी अपनी सामयिक रचनाओं के लिए जनभाषा की सादगी का ही सहारा लिया था। उन्होंने ठेठ अवधी में जनगीतों में-होली चैता कजरी भजन लावनी 8 अवधी ग्रन्थावली खण्ड-4 ७ 17 उैहे
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