महावीर कर्ण | Mahaveer Karn
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|
(ও)
कंधे वृषभ के कंधों की तरह ये | वह बड़े ही चमकीछे, दिव्य
कवच और कुंडल पहने हुए था। यह देखकर झुंती पहले तो -
बहुत प्रसन्न हुई और अपने सौभाग्य पर बढ़ा घमंड करने लगी।
पर दूसरे ही क्षण उसे ख्याल हुआ कि अगर पुत्र-जन्म की .
बात फैल गई तो उसकी और उसके कुल की बड़ी बदनामी
होगी, दुर्वासा के दिए हुए मंत्र और सुर के वरदान पर कोई
विश्वास न करेगा । 'अतएवं वह इस सोच में पड़ गई कि क्या
चारना चाहिए |
अभी तक छुंती मे एक दासी को छोड़कर और किसी को
ग्रह भेद नहीं बताया था | इसलिये उसने उसी दासी को सलाह
` करते के लिये बुलाया । दासी की राय हुई कि वदनामी से बचने
, के लिये बालक को नदी में वहा देना चाहिए 1 पहले # न्ती
इसपर राजी न हुई, पर जब दासी ने सव अँचन-तीच समेमायां ,
तो लाचार होकर उसे यह बात साननी पड़ी,। निदान दासी की ._
सहायता से एक संदूक मँगवाया गया और उसके भीतर बढ़ा
कोमल विछीना लगाकर वह बालक लिटा दिया गया। इसके '
. वाद् संदूक बंद कर दिया गया और ऊपर एक ऐसा लेप लगा
दिया गया जिससे पानी भीतर न जा सके । उस समय कुती
का हृदय फढा जा रहा था--मादग्रेम उबल्न पड़ता था । तबियत
चाहती थी छिस चाँद के ठुकढ्ढेन्मैसे पुत्र फो फरेजे से
लगाए रखे, दूर न करे। पर बदनामी के डर से ऐसी वेहरमी
करनी पड़ी । अंत में वहुत रो-पोकर, बार-बार उसके सिर और
, भाये को सघफर, सैकड़ों देवी-देवता मताकर छ ती ने उस जिगर
, कटुके को গ্মহন नदी मे बहा पिया भौर भगवान्. से पाथना
४
User Reviews
No Reviews | Add Yours...