विश्वकी रूपरेखा | Vishvki Rooprekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृ थिवी | ` विश्व | ३
ज्योतिषके विकासके साथ भूकेन्द्रक विद्वके खिलाफ कितने ही प्रबल সহল
उठे, किन्तु ज्योतिषी अपने पुराने सिद्धांतों बिना छोड़े उसमें सुधार
« करते रहे; यहाँ तक कि वैज्ञानिक युगके आरंभ तक यूरोपमें प्रचलित,
तालमी (१५० ई० )का ज्योतिष भूकेच्द्रताकों कायम रखनेके लिए ग्रहोंकी
चित्र १
कक्षाओंकों पृथिवीके गिर्द घृमनेवाली दूसरी कक्षाएँ मानता रहा (चित्र १)
और भारतमें तो आज भी पंचांगोंमें श्रायेमट्टकी जगह वराहमिहिर, बरह्म-
गुप्त, भास्कराचार्यके भूकेन्द्रक ज्योतिषका बोलवाला है ।
सोलहवीं सदीमें यूरोपमें विचार स्वात््यकी लहर आरंभ हुई।
ˆ उस वक्त हालेंडके ज्योतिषी कोपरनिकस्' (१४७३-१५४३ ई०)ने
पुराने यूनानी ज्योतिषियोंकी भूश्रमण-संबंधी युक्तियोंकी गणित और
तत्कालीन मोदी बेध-प्रक्रियासे परखा । उसे मालूम हुआ, कि भूध्रमण
मान लेनेपर ग्रहोंकी गति और कक्षाएँ अधिक सरल हो जाती हैं, शोर
तालमीकी कितनी ही वक्लिष्ट कल्नाओंकीआवश्यकता नहीं रह जाता ।
तो भी उसकी तथा: उसके पष्टिकर्ताकेप्लरकी वातोंपर पूरा विश्वास
तनतक नहीं हुआ, जवतंक कि गेलेलियो (१५६४-१६४२ ई०)ने १६१२मे
दूरवीनका आविष्कारकर आँखोंके प्रत्यक्ष करनेकी शक्तिको कई गुना
25097608005,
४:
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