गोरखनाथ और उनका युग | Gorakh Nath Aur Unaka Yug
श्रेणी : समकालीन / Contemporary, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.78 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ट यहीं गोरक्षनाथ को समभना श्रावइ्यक है । यक्षवाद तो शाक्त उपासना थी जिसने झाय-सामाजिक व्यवस्था के भीतर तथा बाहर बौद्धो पर प्रभाव डाला । इनके अतिरिक्त श्रौर मिले-जुले जो लोकायत सौर गाणपत्य चीना- चार भ्रादि सप्रदाय थे वे भी प्रभावित हुए। दिव तो श्रायं-सामाजिक व्यवस्था के भीतर श्रौर बाहर दोनो जगह स्वीकृत थे निस्सन्देह श्रपने भिन्न रूपो मे । बौद्धो मे अवलोकितेइवर की उपासना थी । ग्राय॑ चिन्तन का काइमीर त्रिक् सप्रदाय लोकायत सौर गाणापत्य चीनाचार तथा दोनो दिव श्रौर श्रवलोकितेश्वर भर तत्कालीन कौल मागं कापालिक मत सब ऐसे परस्पर मिले हुए है कि उनको श्रलग-म्रलग कर देना सहज नही है । कुण्डलिनी योग चक्र पद्म नाडी ज्ञान बलि तत्र देवियो की उपासना शक्ति पुजा शमशान का महत्त्व सिद्धि के प्रयत्न श्रौर योनि पूजा का प्राधान्य मिलता है । स्त्री को श्रपनी साधना के क्षेत्र से बहहर रखने वाले भी कुछ मत श्रवद्य थे । इसी वन मे जालघर मिलते है । माकंण्डेय का हठयोग गोरखनाथ के हृठयोग का पुववर्त्ती है पर उसके विषय मे कुछ ज्ञात नह्टी है तभी मैंने उसे ग्रलग ही रखा है । ग्रौर यहाँ श्राकर दो मुख्य विभाजन हुए । सब का सार छनकर गोरखनाथ उठा भझ्ौर उधर योग की प्राचीन धारा जो श्रार्यों मे पृर्ण॑रूपेण स्वीकृत थी वह पातजल योग दद्नन उसके सामने खड़ा था । ब्राह्मण समाज पर छाने लगा था । श्रब्राहमण समाज पराजित होता जाता था । ब्राह्मण समाज के नियम को रूढ करता जाता था । उस समय विजयी इस्लाम उत्तर से घुसा श्रौर दक्षिण से भक्ति का उदय हुआ जिसने नए रूपों मे ब्राह्मणवाद को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया । यह एक महान युग था । इस प्राचीन देश की पुरानी व्यवस्थाएं जो गल चुकी थी फिर ठोस रूप धारण करने के भीम प्रयत्न मे लग गई । इस हल-चल के युग में भक्ति योग हठ निर्गूंणमत प्रेम सब को लेकर यहाँ की निम्न जातियों अर्थात् वर्गों ने मुक्त होने का प्रयत्त किया । फकीरी मुसलमान श्रपने ढंग से अपना प्रचार कर रहे थे । उधर वे बौद्ध प्रभाव स्थित तथा श्राय-सामाजिक व्यवस्था के बाहर स्थित सप्रदाय जो किसी भी प्रकार ब्राह्मण व्यवस्था को स्वीकार करने को तत्पर नहीं थे इस्लाम को मुक्ति का मागें समझकर सामूहिक रूप से दीक्षा ले-लेकर मूसलमान हो गए । श्र दूसरी भर भक्ति की श्राड मे जो सहुलियते ब्राह्मण ने निम्नवर्गों को दी उनका प्रभाव पड़ने लगा । ब्राह्मण धर्म का श्रेष्ठतम श्राघार सामतवाद था इस पर शभ्रागे विस्तारपूर्वक विचार किया
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