सम्यक्तपराक्रम तीसरा भाग | Samyaktaparakram Teesra Bhaag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ ) वाद्वा बोल
और शुभ अनुभाग की वृद्धि करती है, क्योकि अलुप्रेत्षा शुभ है । शुभ
से शुभ की ही वृद्धि दोती है और अशुभ से अशुभ की वृद्धि होती है।
अनुप्रेत्ञा से और क्या लाभ होता है ? इसके लिए भगवान्
कहते हैं--अनुप्रेक्षा बहुत प्रदेशों बाली कमं प्रकृति को अल्प प्रदेश
वाली बनाती है ।
तात्पय यह है कि अनुप्रेत्ञा से ऐसा शुभ अध्यवसाय उत्पन्न
होता है कि वह कर्म की प्रकृति, स्थिति, अलुभाग और प्रदेश-इन
चारों के अशुभ बंधनों को शुभ में परिणत कर देता है।
५. यहाँ एक प्रश्न किया जा सकता है। वह यह कि यहाँ आयु-
कमं फो छोड़ देने का क्या कारण है ? शुभ परिणाम से शुभ आयु
का बंध होता है और मुनि जन जो अनुप्रेत्षा करते हैं वंह शुभ परि-
णाभ वालो हो होती है। ऐसी दशा में यहाँ आयुष्य का निषेध किस
उदेश्य से किया गया है १
ष इस प्रश्न का उत्तर यह् है कि अनुप्रेत्षा से आयुष्य कर्स का
व॑ध कदाचित् होता है मौर कदाचित् नदीं भी होता । कारण यह है
आयुष्य कमे एक भव में एक बार ही बंघता है और वह भी
अन्तमहत्तकाल में बेघता है | अगर अनुप्रेज्ञा करने वाली ससार में
रहता है तो भी वह अशुभ कर्म नहीं बाँधता है, यदि वह मोक्ष जाता
आयुष्य कर्म का बँध ही नहीं करता | इस प्रकार अनुप्रक्षा
ररे वाल को कदाचित् आयुष्य कर्म बँधता है, कदाचित् नहीं बँधता।
इसी कारण यहाँ आयुष्यकर्म छोड़ दिया गया है |
अलुप्रेज्षा से और ज्या लाम दे! इस विषय मे कद्दा गया,
ইন্না करने वाला असातावेदनीय कम का बार-बार उपचय
नहीं करता अर्थात् बार-बार उसका बध नहीं करता। यहाँ सूत्रपाठ
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