सम्यक्तपराक्रम तीसरा भाग | Samyaktaparakram Teesra Bhaag

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Samyaktaparakram Teesra Bhaag by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) वाद्वा बोल और शुभ अनुभाग की वृद्धि करती है, क्योकि अलुप्रेत्षा शुभ है । शुभ से शुभ की ही वृद्धि दोती है और अशुभ से अशुभ की वृद्धि होती है। अनुप्रेत्ञा से और क्या लाभ होता है ? इसके लिए भगवान्‌ कहते हैं--अनुप्रेक्षा बहुत प्रदेशों बाली कमं प्रकृति को अल्प प्रदेश वाली बनाती है । तात्पय यह है कि अनुप्रेत्ञा से ऐसा शुभ अध्यवसाय उत्पन्न होता है कि वह कर्म की प्रकृति, स्थिति, अलुभाग और प्रदेश-इन चारों के अशुभ बंधनों को शुभ में परिणत कर देता है। ५. यहाँ एक प्रश्न किया जा सकता है। वह यह कि यहाँ आयु- कमं फो छोड़ देने का क्या कारण है ? शुभ परिणाम से शुभ आयु का बंध होता है और मुनि जन जो अनुप्रेत्षा करते हैं वंह शुभ परि- णाभ वालो हो होती है। ऐसी दशा में यहाँ आयुष्य का निषेध किस उदेश्य से किया गया है १ ष इस प्रश्न का उत्तर यह्‌ है कि अनुप्रेत्षा से आयुष्य कर्स का व॑ध कदाचित्‌ होता है मौर कदाचित्‌ नदीं भी होता । कारण यह है आयुष्य कमे एक भव में एक बार ही बंघता है और वह भी अन्तमहत्तकाल में बेघता है | अगर अनुप्रेज्ञा करने वाली ससार में रहता है तो भी वह अशुभ कर्म नहीं बाँधता है, यदि वह मोक्ष जाता आयुष्य कर्म का बँध ही नहीं करता | इस प्रकार अनुप्रक्षा ररे वाल को कदाचित्‌ आयुष्य कर्म बँधता है, कदाचित्‌ नहीं बँधता। इसी कारण यहाँ आयुष्यकर्म छोड़ दिया गया है | अलुप्रेज्षा से और ज्या लाम दे! इस विषय मे कद्दा गया, ইন্না करने वाला असातावेदनीय कम का बार-बार उपचय नहीं करता अर्थात्‌ बार-बार उसका बध नहीं करता। यहाँ सूत्रपाठ




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