गल्प कुसुमाकर | Galp Kusumakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
219
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ঙ क्षमा प्राथना
সলাত
कापतेनमें जाकर यह नीच कर्म कभी न करूगा। अपनी भस
बेचकर छाया हूं। तेरे जेसे पहलवान पह्ेदारी करें। दोस्त |
यह् मुझसे न देखा गया। जा आजकी गाड़ीसे चला जा)
सामान ले आ। सरदी ऊपरसे आनेवाढी है। कुछ गिलेफ
बनाने छग जा । मुझे अब दूध नहीं भाता था माधव । इसीसे भेंसवेच-
कर दाम खड़े कर छियि । यदि इन रुपयोंके अतिरिक्त मित्रके लिये
शरीरकी आवश्यकता पढ़े तो उसे भी हँसते-हँसते न््योछावर कर
दू गा। मुझे निरा मोची ही न समझना कुछ मनुष्यता भी सीखी है।
जिस धनसे मित्रोको ओर धरके भादूर्योको खभ न पहुचे ओर
शत्रुओंको डाह न पेदा हो वह धन नहीं, ठीकरी है माधव |
जा आज ही | बस और कुछ मत वोछ। यह कह नगरखेड़ अपने
मोपड़ेकी ओर चला गया।
| ४ |
धर्मशाछामे व्याख्यान सुनकर माधव हकीमजीवाटी गीसे
बाहर हो गया । कुछ देर सोचकर त्रिपोलिया चाजारकी तरफ़ चटा
वहां दरवाजेमे धुसकर शिवे मदिरके पास भाकर खडा हो गया]
ज्योंही नीची दृष्टि की कि एक रेशमी रूमाल किसीकी जेवसे निकल
कर गिर पड़ा | माधघवने उसे चट उठा लिया जिसके एक सिरेपर एक
गाठ खी थी । उसने जरा आगे वटकर उनको मुजराकरके उन्हें देने
ङ्गा । सर्वर वख्वन्तसिहने रूमार देखकर अपने काव कर लिया
ञओौर माधवको कोतवारीमे ठे जाकर खडा कर दिया इसके वाद्
थानेदारने यह मामछा माल अफसरके यदा पेश कर दिया ¦
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