गल्प कुसुमाकर | Galp Kusumakar

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Galp Kusumakar by पुप्फ़ जैन भिक्खु - Pupf Jain Bhikkhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঙ क्षमा प्राथना সলাত कापतेनमें जाकर यह नीच कर्म कभी न करूगा। अपनी भस बेचकर छाया हूं। तेरे जेसे पहलवान पह्ेदारी करें। दोस्त | यह्‌ मुझसे न देखा गया। जा आजकी गाड़ीसे चला जा) सामान ले आ। सरदी ऊपरसे आनेवाढी है। कुछ गिलेफ बनाने छग जा । मुझे अब दूध नहीं भाता था माधव । इसीसे भेंसवेच- कर दाम खड़े कर छियि । यदि इन रुपयोंके अतिरिक्त मित्रके लिये शरीरकी आवश्यकता पढ़े तो उसे भी हँसते-हँसते न्‍्योछावर कर दू गा। मुझे निरा मोची ही न समझना कुछ मनुष्यता भी सीखी है। जिस धनसे मित्रोको ओर धरके भादूर्योको खभ न पहुचे ओर शत्रुओंको डाह न पेदा हो वह धन नहीं, ठीकरी है माधव | जा आज ही | बस और कुछ मत वोछ। यह कह नगरखेड़ अपने मोपड़ेकी ओर चला गया। | ४ | धर्मशाछामे व्याख्यान सुनकर माधव हकीमजीवाटी गीसे बाहर हो गया । कुछ देर सोचकर त्रिपोलिया चाजारकी तरफ़ चटा वहां दरवाजेमे धुसकर शिवे मदिरके पास भाकर खडा हो गया] ज्योंही नीची दृष्टि की कि एक रेशमी रूमाल किसीकी जेवसे निकल कर गिर पड़ा | माधघवने उसे चट उठा लिया जिसके एक सिरेपर एक गाठ खी थी । उसने जरा आगे वटकर उनको मुजराकरके उन्हें देने ङ्गा । सर्वर वख्वन्तसिहने रूमार देखकर अपने काव कर लिया ञओौर माधवको कोतवारीमे ठे जाकर खडा कर दिया इसके वाद्‌ थानेदारने यह मामछा माल अफसरके यदा पेश कर दिया ¦




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