हमारे गांवों की कहानी | Hamare Gaonon Ki Kahani

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Hamare Gaonon Ki Kahani by रामदास गौड़ - Ramdas Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म इसारे गाँवों की कहानी पये मै किलान जनोग शत्य लेते थे। यह पुर एक प्रकारके बाघ का দার 81 , जोहौ, तो उसमे सन्देह नदी समालम हाना करि गहर थ भी तो बहुत कम रहे होगे गवा की ही गिनती सवम ज्यादा लगी मंत्रों से यह भी पता चलता है कि हल से खेत जोने जाने थ और जौ, गहें, धान, मग आदि अनाज और गन्ने की पेशावार बह्तायत से होती थी ।* लोग गाय, बेल, घोछडे, भड, बकरी गसखते थे ओर चरन को ले जाया करते थे। समय-समय पर खेती के सम्बन्ध भे नहर उपत पर, फसल खडी होने पर, कदने पर, बोने फे समय इत्यादि अवसरो पर किसान यत्न करता था ओर ण्डी अच्छी दन्षिणगा देता था। ब्राह्मण के दाहिनी ओर गाय होती थी, जो यल के अस्त में उस दी जाती थी। दक्तिणा नाम इसीसे पडा हैं। आजकल पुरोहित जो पद-पद पर गझ-दान मॉाँगता है वह्‌ इस पुराने रिवाज के अनुसार ही १, शतमश्मन्मयोना पुरामिन्द्रो व्यास्यत्‌ | दिवोदासाव दाशुप ॥ ऋग्वेद म> ४ सू० মণ २० तथा प्रो० सनन्‍्तोषकुमार दात की पुस्तक प्रष्ठ १०-११ इन्द्र ने दिवोदास मामक यजमान को पत्थर के बने हुए सो रो! को दिया | | २, युवो रथस्य परि चक्रमीयत ईमन्दामिपरयति । श्रस्माँ अच्छा सुमतिर्वा शुभस्पती श्रा वेनुरिव धात्‌ ॥ ग्वेद म० <= स २२ म०४ है अश्विनी कुमारो ! तुम्दारे रथ का एक चक्र थुलोक की परिक्रमा करता है, दूसरा तुम दोनो के समीप से जाता है। हे उदकरक्षुक ! कुमारो ! तुम्हारी अच्छी बुद्धि दमारी तरफ धनादि देने के लिए उषी प्रकार आवे, जिस प्रकार नव-प्रयुता गौ दूध पिलाने के लिए बच्चे के पास जाती है | পরা পা




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