एक भेट (नाटक) | Ek Bhet (Natak)

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Ek Bhet(natak) by ओम प्रकाश कपूर - om prakash kpoor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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» राजनाथ--आप तो गिन कर रख लेते दै महीने मे, भटा आप क्यों न शन्त होगे १ दिवाकर--न्‌ मत्तक पर हाथ पटककर ] ओफ ! [ झ्िवनाथ से ] जाओ वेटा तुम धर जाओं । [ शिवनाथ घर जाते हैं. ] दिवाकर--यह सब क्‍या ९ राजनाथ--आये और झाइने छगे आइैर मुझ पर, भेंस छाया में वॉध दो, गोवर-कड़ा साफ कर दो। क्यो? में कोई गुखम हैँ इनका ९ दिवाकर--अरे ! राजनाथ--मैं भी नहीं उठा, तो ऐंठ गये । बोले, शाह कहों है ९ मैं कोई आ छगाने वाला हु, झाड़ू पूछे नौकर से । दिवाकर--अरे वेटा, वुम्दारा वड़ा भाई है, उसमे धुरा दी स्या कह दिया उसने | तुम्हारे लिए कया नहीं करता वह ९ राजनाथ--आप भी पिताजी भुम पर लीपने लगे। अभी उस दिन आप ही न माने । मैस ने मार ही दी पूँछ, कितना गन्द्रा हो गया था मेय सूट । दिवाकर--घुछा भी तो दिया था तुम्हारे इसी भेया ने | तुरत दे दिया था पहनने को अपना, आर स्वयं बस यो ही । राजनाथ--तो कोई बात कहने के पहले टाइम और मूड भी तो देख लेना चाहिए । दिवाकर--इसका च्या अर्थ ? राजनाथ--अर्थ स्या, मेरे पास आया था मेरा एक क्लासफेलो-- दिनेशचन्द, जिसका फादर डिप्टी कलेक्टर है। उन्हें आता देख पूछ चेठा, ये कोन ९ दिवाकर--अच्छा ! राजनाथ--ये आ रहे थे धोती-कुरते में थ्ड क्लास पोजीमन में,




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