दक्खिनी हिन्दी | Dkikhani Hindi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्प दक्खिनी हिन्दी भरती हुए । महानुभाव पन्थ के प्रवतक चक्रधर थे, इन्होंने १२६३ से १२७१ ६० तक अपने मत का प्रचार किया और फिर बदरिका- श्रम चले गए। इनके वचनों का संग्रह इनके शिष्य महीन्त्रमट ने किया । यष्टी वचन श्राचार्यसृत्र श्रौर सिद्धान्तसूत्रपाठ नाम से, इस सम्प्रदाय के मूल ग्रंथ हैं। महिमभट ने अपने गुरु की जीवनी भी लीलाचरित नाम की लिखी । ये तीनों पुस्तं गय मं दै । चक्रधर के दूसरे चेले भस्करावायं ने शिशुपाल वष नामक काव्य रचा । यादववंशी राजा इसी महानुभाव पन्थ के अनुयायी थे । देवगिरि मे (१३२० ३० मे) मुस्लिम राज्य क्रायम हो जाने पर भी महानुभाव पन्य थोडे दिन चलता रहा । यद मृति-पूजा के विरुद्ध था, इसलिए इसको मुसलमानों द्वारा उत्तनी हानि न पहुँची जितनी अन्य मतों को। पर यही मुस्लिम संरक्षा इस सम्प्रदाय ক্ষ लिए घातक सिद्ध हुई क्‍योंकि हिन्दू जनता इसी कारण उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी। इस सम्प्रदाय के तमहो जाने का दूसरा कारण यह भी दिया जाता है कि इसके संचालकों ने श्रपने ग्रंथ ऐसी गुप्त लिपि में लिखे जिसका परिचय केबल विशेष दी क्षा- प्राप्त शिष्यों को था | कुछ भी हो, महानुभाव पन्‍थ के-फरीब बारह ग्रंथ ऐसे सिले हैं जो वाकरी पन्‍थ के आदि प्रंथों से पहले के है | महानुभाव पन्‍थ की निरबत वाकरी पन्‍थ अधिक लोकप्रिय साबित हुआ । इसके सनन्‍्तकवि मराठी भाषा के भादि कबि समभ, जाते हैं। ज्ञानेश्वर को मराठी का श्रादिम साहित्यकार कषा जाना है । इन्होंने भावार्थदीपिका नाम की भगवद्गीता की व्याख्या १०६ - ६० में घनाई। इसी को ज्ञानेश्वरी भी कहते हैं| इसके अलावा अमृतानुभव नास का एक दर्शन-प्रंथ और कुछ स्तोत्र और भजन भो इनकी कृति हैं। इतना काम इन्होंने २९ साल की अवस्था में कर




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