जमनालालजी | Jamanalalji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
526
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भी अपनेको उसमें उत्से कर देते थे। नागपुर में कांग्रस का अधिवशन
१९२० के दिसम्बर में हुआ । स्वागत-समिति के अध्यक्ष जमनालालजी
हए ओर असहयोग के आन्दोलन में उत्साहपूवेक आ गए । महात्माजी
ने वकीलों को वकालत छोड़ने के लिए कहा। उनमें बहुतेरे ऐसे लोग थे,
जो असहयोग में आना तो चाहते थे; पर परिवार के भार के कारण
कठिनाई महसूस करते थे। ऐसे लोगों के जीवन-निर्वाह के लिए जमना-
लालजी ने एक लाख का दान दिया और एक प्रकार से 'तिहक-स्वराज्य-
कोष' का आरम्भ भी इसीसे हुआ, जो पीछे चल कर एक करोड़ से
अधिक हुआ।
असहयोग-आन्दोलन में पड़ जाने के कारण जमनालछालजी को अपने
व्यापार में समय लगाना दुष्कर हो गया और इसलिए बह सारा कारबार
कर्मचारियों के हाथ में सौंप कर सावंजनिक काम में अपना समग्र लगाने
लग गये; पर वह इतने व्यापार-कुशल थे कि जब कभी थोडा समय
निकाल सकते तौ उतने ही मेँ कर्मचारियों से सव बाते समभ कर उनको
उचित आदेश और परामर्श भी दे दिया करते थे। यद्यपि कई दिशाओं
में, विशेषकर नेतिक कारण से, उन्होने व्यापार कम कर दिया था, तो भी
काम एक अच्छे पैमाने पर चलता ही रहा और बाजार में उनकी पीढी
की बहुत अच्छी साख बनी रही।
यद्यपि वह अंग्रेजी बहुत नहीं जनते थे तो भौ इतनी तीव्र बुद्धिथी
कि अंग्रेजी में भी कांग्रेस में उपस्थित किये जाने वाले प्रस्तावों का जो
मसौदा बनता उनमें बारीक-से-बारीक प्रइव निकालते और शंकाओं का
निराकरण कराते। इसलिए सरदार वल्लभभाई मजाक किया करते कि
वह॒ वक्तिग-कमिटी के वकील हैं। अपनी व्यापार-कुशलता के कारण
कांग्रेस के अन्दर उनकी व्यवहारी बुद्धि से सभी लोग लाभ उठाते। १९ २१
से उनकी मत्य के समय तक वह् वराबर कांग्रेस-वरकिंग-कमिटी के मेम्बर
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