श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण बालकांड | Shreemadwalmikiya Ramayan Baalkaand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चन्द्रशेखर शास्त्री - Chandrashekhar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9१ बालेकाण्टम
५४
शिष्यस्तु तस्य व्रतो मुतेवक्यपतुततमम्। प्रतिजग्राह संतुष्टस्तस्य तुषोऽभवन्पुनिः ॥१६॥
सोऽभिषेकं ततः दत्वा ती प तस्मिन्यथाविधि। तमेव चिन्तयन्नथगुपावतत ই प्रूनिः ॥२०॥
भरद्राजस्ततः शिष्यो विनीतः श्रुनवान्युरोः। कलशं पएृणंमादाय पृष्टनोऽनुनगाम ह ॥२१॥
स प्रत्रिश्याश्रमपदं शिष्येण सह धमवित् । उषतरिष्रःकथाश्चान्याश्चकार ध्यानमा स्थित: ॥ २२॥
आजगःम ततो ब्रह्मा लोककतो स्वयपरथुः। चतूर्मो महातेना द्रष्टं तं सुनिप्गवम् ॥२३॥
बाल्पीक्िरथतं दृट्वा सदसोत्याय ब्राग्यतः । प्राञ्जलिः प्रयतो भूता तस्था परमविस्मितः ॥२ ॥
पूजयापास तं दें पाथा -यासनवन्दनेः । प्रणम्य त्रिभिवचेनं पृष्ट्वा चेव निरामयम् ॥२५॥
अयोपविश्य भगवानासने परमा चते । बाल्मीकय चे ऋपय सादरेशासन तत; ॥२६॥
ब्रह्मणा सपनुदातः सोऽप्युपाविशदासने । उपणषि तदा तःस्मन्सा्नाल्नाकपितामहं ॥२५]॥
तद्धनेनेव मनसा वाल्पीकि्ध्यानमाभ्थितः) पापात्मना कृतं कष्टं वैरग्रहणबुद्धिना ॥२८॥
यत्तादृशं चारुरवं कौशं ह यादकारणान् । शोचननेब पुनः करौ शीुषश्लोमिमं जगौ ॥२६॥
पुनरन्तगेतमना না शोकपरायणः 1 तथुत्राच ततो লা प्रहसन्मुनिपुंतवम् ॥३०॥
मा निषद् प्रतिष्ठां व्मगम: शाइवती: समाः यत्कॉचमिथुनादेकमयधी: कामसोद्ितम् --
1 है. ' इसके पहले वैदिक छन््दर थे । अतएवं पहले पहल, सहसा विना जाने-बूके एक छन्दके
प्र ाधित दोजानमे उन्हे श्र श्चये हा ) 1 मुनिशी इस वानक्रा रथं शिप्यन सममा और बह प्रसन्न
हुआ, मुनि भी उस शिष्यपर प्रनन्न हए ।६९। उसी घ्राटपरर त्रिधि पूवक स्मान करके मुनि घर छोटे ।
घाटपर पत्ञीकी जो घटना हुई थी वह उनके चित्तसे दूर न हुइ, वे उसपर विचार करते दही रह ॥२८॥
सुनिवा शिप्य भरद्वाज बिनयी था और उसने गुरुस ग्रन्थ पढ़े थे, बह जलस भरा घडा लेकर मुनिकरे
पीछे-पाल्े चला 1२१ | धर्मात्मा वाल्मीकि शिप्यके साथ अपने आश्रममें आये और बैठकर दूसरी
बातें करने लगे, पर मुनि उस समय भी ध्यानम्थ थे, व उसी घाटवाली बातका विचार करते रहे ।.२२॥॥
उसी समय मुनिश्र्ठ वाल्मीकिको देखनके लिए चतुमुख माते जसी खष्िक रचयिना ब्रह्मा वहाँ आये ।
बरह्मा स्वयं प्रभु ই, হন্বাঁন स्वयं प्रभाव प्रप्र क्रिया है। दूमरकी शक्ति य शक्तिमान् नहीं हैं. ॥+३॥
ब्रह्मा को देखते ही वाल्मीकि बड़ी शप्रतास उठे | उन्होंन बोलना बन्द करदिया, बड़ी नम्रताफे साथ
हाथ जोड़कर बे खड़े हुए, बरद्याके एकाएक आजानेमे वे बड़े विस्मित थे ॥२४॥ पाद्य, अध्य, आसन
ओर स्तुनिके द्वारा उन्होंने ब्रह्माको पूछा की और विधिवत् प्रणाम करके उनसे कृशल-प्रश्न पूछा
॥-५।. उत्तम आलनपर भगवान् ब्रह्मा बैठे और उन्हांन दूसरे आसनपर वाल्मीकिको भी बैठनके
लिए कहा 1२६। बअद्यास अ'ज्ञा पाकर वाल्मीकि भ॑ , पतरामह ब्रह्माके आसन ग्रहण करलेनेपर, अपने
आसनपर बैठे ।/२७॥ वाल्माकिका मन उसा घट-वही और लगा था, वे ध्यात लगाकर उसीकों बाल
सोचने लगे । उस पापात्मा ओर वैर मोलनेजा जन यह् बहुत बुरा क्रिया ।८८। मीटा बोलनेवाने उस
क्रो च्चकरो विना कारण ही उसने मारा ओ्मौर क्रौँबी दुःखनी हई, इस वाव्को साचन हुण् उन्दोनि पुन
वः शाक पदा । २९॥ मुनि पुनः शाकके कारण ध्यानस्थ हो गए, उनका बाहर! ज्ञात जाता रदा। मु ने-
श्रद्को ऐसा विज्वत देखकर त्रह्मान हँसकर कदा,॥३०। यद् जा आपके मुखत बायो छन््दरूपत निेढी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...