परेड ग्राउंड | Pared Ground

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Pared Ground by हंसराज रहबर - Hansraj Rahabar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' , সব प्रा ५ मे मध्यस्य बना लेते हैं । उस दिन जब वह कलीम अल्लाह হাহ के मजाद के निकट उनकी बरसाती कपड़े की छोटी-छोटी श्रौर पुरानी मोपड़ियो को ओर गया, तो राते के भ्राठ-नौ वजे होगे । रफीक भीर उसकी पलौ श्रापस में लड़-कगड़ रहे थे | भौरत बहुत ही ऊँचे और कदु स्वर में प्रायः चीखकर कह रदी धी- “में तो बोलूँगी, हर एक से बोलूगी। यह कौन होता है मना करने वाला ? इसकी गालियाँ भी सहे श्रौर जृष्ठिषौ भी सार्ये 1 स्त्री का तो धर्म ही यह है जिस तरह भी प्रादमी रखे, उसी तरह रहे ।” एक लम्बे कद का प्रादमी, जिसने सिर पर्‌ भ्रगोछा वाँध रखा था, भ्रपती फाज़ी दाडी में हाथ फेरते हुए उसे उपदेश दे रहा था 1 “मैं इसके यहाँ नही बैदूगी । तलाक दे दे, वरना फसा|ईूँगी | वहन का ससम मुझे मारते भ्राता ह ।'' श्रौरत ने एकदम बहुत सी गालियाँ दे डाली । “देखा, गालियाँ देती है । फिर कहोगें कि मे ही धुरा हूँ।'---रफोक में फरियाद की । आपस में लडा नही करते ।'दाढी वाले व्यक्ति ने श्रौरत को सम- भाना जारी रसा, “वह गरम हो, तुम नरम हो जाझो भौर तुम गरम हो तो वह नरम पड़ जाय । एक दूसरे की सहकर ही निर्वाह होता हैं। वरना जिन फुकीरनियो ने अपने मर्दों को छोड़ दिया है, माँगती फिरती हैं ।” 'माँगती है, तो मजे से खाती भी है । यह छोकरी का यार मुझे बया सखिलायेगा ? इसका श्रपना पेट तो भरता ही नही, सारा दिनं पडा लोगों की चुगलियाँ करता रहता हैं । वह भौरत बदमाश है, वह प्रादमी लफगा ह, जसे दुनिया भर में वस यदी एक शरीफ्ादा है 1 “जानती ही हो, हम लोग तो फूकीर है । जो दुछ मिल गया उसी पर गुजारा करना पड़ता हैँ । माँगने जाते हूँ, देना दाता की मर्जी है-- कसी भी घना, कभी सुद्दीभर चता और कभी उस से भी मता !




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