राजस्थानी गौरव ग्रंथमाला : भाग 2 | Rajasthani Gaurav Granthmala : Bhag 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरोत्तम स्वामी - Narottam Swami
No Information available about नरोत्तम स्वामी - Narottam Swami
मनोहर शर्मा - Manohar Sharma
No Information available about मनोहर शर्मा - Manohar Sharma
लक्ष्मी कमल - Laxmi Kamal
No Information available about लक्ष्मी कमल - Laxmi Kamal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तत्त्व विवार হু
स्त्री पर-पूरिस-परिहार, पुस्ष हुता स्व-दार-सतोपु परनदार वजनु--भेठ
चत्य् अणु-तु धनु, धायु सेतु, व्यु, स्पउ, सोनउ, ड्विपदु, चतुप्पढ़ु,
जुष्पु--लत्र विध-परिग्रह-परिमाणु--ओेउ पाचमउ अणु-म्रतु
(तिनन गुण-ब्बत किसा ?) (दिसि-बठु)--दस दिसि---ध्यारि दिति च्थारि
विटिसि, भेक भध, मेक ऊध्व--्ह गमण-परिमाणु कीजद--भेउ पर्हिलड
गुण-अतु
भोग-परिभोग-ब्तु--भोगु जु जेक वार भोगद्रियइ--आहारु, तबात्यु फूलु
विलेपनु परिभोगु जु पुणु-पुणु मागत्रियद--मव्रन विलया आभरण वस्त्रादिनुं
सवहि परिभोग निषेघु बीजइ--ओउ बीज गुण द्रतु
अनथ-दड-बतु॒चतुविधु--अपध्यानाचरितु प्रमादाचरितु, ভিজ সানু
प्रापीपदेशु-- পিত্ত নীজত মুগ সন্ত
(चारि शिक्षा-त्रत क्सि ?)--सामाइकु--समइ भात्रि सावज्ज जोगु परि
तीसरा जणुव्रत (है) । (४) स्त्री का पर-पुरुष का परिहार (ओर) पुरुष का अपनी
पत्ना स सतुष्द रहना (तथा) पर-स्त्री का वजन करना--यह (स्युलं मथुन
विग्मण भथवा स्युल ब्रह्यचय नामक } चौया अणु तरत (है) (২) धन, धान,
खेत, वास्तु (== मकान) चारी साना शापाय (=-रास लासौ भारि), चौपाय
(नौर) कृष्य (क्म मूल्य वाली धातुओ अर्थात साधारण बातुआ के
बतन-वासन आदि) इस नव प्रकार के परिग्रह वी सामा रखना--यह (জ্বল
परिग्रह विरमण अथवा स्यूत अपरिग्रह नामक) पाचवा अणु-त्रत (है) ।
(तीन गृणतरत कौन-ते है ?)--(१) र्ना परिमाण ब्रत्त--दस न्नाम
(हैं)--बार लिका, चार विदिनाअ भक नीच, (मीर) ओक उपर--दन
नाजा मे जनि की सीमा का जाय (=क्ममेक्म दूरी तक् जाया
जाय)--यह् पटना गृण व्रत है । (२) भाग-परिभोग (परिमाण)-अत--भोग
जां मेक (हौ) वार भोगा जाय जसे भाजन লানুল पुप्प (सुगध )विवपन
(भौर) परिभोग जौ वारवार भागा जाय जम भवन स्त्री जाभुूषण वस्त्र जादि
--मभी परिभागा का निषेध किया जाय--यह दरूमरा गुणत्रत (ढै) 1 (३)
नथ दड विर्मण व्रत--यह चार प्रकार না (हाता है}--मप-पानाचरित
(न्ल्भुसा ध्यान या चितन करना) प्रमादाचरिते {==ग्रमादपूण काय क्रमा)
ट्ि प्रदान (+-हिंसा या पाप के साधना का प्रदान करना), (और) (पापोपनेश
(दुष्ट उपदे देना)--(इन चारा म त्रिरति)--यह् तीसरा गुण-वरत (है) ।
चार दिक्षा-व्रत कौन-स दै--{१) सामायिक- मम भाव स सटाप कार्योका
User Reviews
No Reviews | Add Yours...