लोकसंस्कृति आयाम एवं परिप्रेक्ष्य | Loksanskriti Aayam Aur Pariprakshy
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1९५]
মর हर र बैठ गया था । खोनये डाकू पर उसकी विजय ने कारण ब् गौ रवान्वित धा 1
उपस्थित जन-समुदाय समी गाया बे' नामक के साथ भी थे। कभी-कमी विस्मय गरी
चीध उनम से किसी एक वे झुँह से निवल घाठी थी या किसी दूसर थी हष्ी पूरे कमरे
से गूज उठती । दूसरे ने अनिच्छापूर्दद उसको यरौतियों से गिरे बाँसुओं को पोछ्ठ दिया।
वे समी शपनी आँखों को कमपकाये तद तक बेठे रहे, जब ठर कि गाघषा समाप्त नहीं हो
गई । उन्होंने इस एकरस किन्तु ब्ाश्वर्यजनद रूप से सरल धुन के प्रत्येक स्वर को पसद
किया ४
में समी सोग निरद्धार थे, फिर भी कविता फा उतने! लिए छुछ अप या, जिसका
आज घप्मेजों के लिए यह थय नहीं होता है।यह सब है कि हमने शेवसपियर और
कौट्स वो पैदा किया है और वे उत्वा से ज्यादा बडे थे । लेकिन उत्ता लौवप्रिय पा और
शेबसपोयर या फीट्स पे बारे म॒ हमारे देश से बाज जितना कहां जा सकता है, उससे
यह अधिक जाना जाता है। ( मार्सवाद और बबिता )
1 शपामाचरण दुपे ॥
कलाबो थे' उद्भव कौर विवास फा पहला चरण लोक भावना कर सामुदायिक
चेतना से अनुप्राणित रहा | कला के सूजन और उपभोग दोनों मे सामूद्विक्ता स्पष्द रूप
से दिखाई पढ़ती थी। समूह मिल-जुल कर गाता और नावठा था। दादियों और नानियों
ने हजारो वपो तरु सीमित सख्या के घभिप्रायो (मोरिन्द् स) वाली सोक कामो से बच्चो
वी कई पीढ़ियों वा प्रनोरजव और भानवर्द्धध बिया और उन्दे सुताया । ये सोक क्थाए
परे समुदाय की द्वोती थी, उत पर किसी परिवार अयवा समूह विशेष का एकाधिकार नही
होता वा 1 समुदाय के मिधक उसका इतिहास और दर्शन होते थे, लोवजीवच-दृष्टि इनमे
अभिव्यवित पाती थी । भित्ति चित्र औौर साधारण बाइतियाँ सधुदाय का कोई भी सदस्य
प्राय सप्तान योग्यता से बना लेता था। खामाय जीवन मे उपयोग मे आन याह्ली बह्तुबो
को भी फ्लात्मक ढंग से सजाया-सवारा जाता था। वलाकाए और खोता अथवा दशक
का अन्तर स्पष्ट नहीं था दोनों वो भूमिकाए मिली छुली होती थी। एक ही व्यवित कभी
गायक या नतक होता चा, तो कभी वहू दर्शक बन जाता था। गायत, दत्य, कहानो कहने
अथवा चित्राकन वी क्षमताओं मे अन्तर अवश्य होता या, फिन्तु इन क्षेत्रों मे विशेषता
विकदित नहीं हुई थो । विभिप्त बला-रूपो के सवभ में समूह थे' प्रत्येक ध्यवित को जान-
फारी होतो थी और वे थोढे बहुत बतर से उनमे सहभागी बन सकते थे। सामाजिक
सरचना मे जटिलता बाने के बाद क्लाओ मे भी विशेषीकरण का आरम हुआ, किन्तु
सुस्मे सपय ठकू उनसे सामूहिक्ता के तत्व बने रहे और थोडे बहुत परिवठन के साथ घाज
भी बने हैं ।
ध कलाएं जोवन के अंग प्रत्य॑ग से जुडी रहती थी | कठित शारीरिक श्रम वे
काम सगीत से हलके किये जाते थे। पेड कादना, नाव चुसावा, নী लोचता, चगकी
पीखना आदि क्सीन किसी प्रकार के संगीत पे जुडे होते थे। हर ऋतु के अपने गीत
और उत्प होते थे। जीवन के संक्रमण काल जन्म, विवाह, मृत्यु--छृत्य और गायन के
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